मुकर्रमी! आपके मूक़र अख़बार के ज़रीये में मुताल्लिक़ा हुक्काम को शहर के मग़रिबी इलाक़े की तरफ़ मुतवज्जा कराना चाहता हूँ। मुझे बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ता है कि आज जब बड़े पैमाने पर शहर की तौसीअ हो रही है और हर इलाक़े के शहरीयों को जदीद तरीन सहूलतें बहम पहुंचाई जा रही हैं, ये मग़रिबी इलाक़ा बिजली और पानी की लाईनों तक से महरूम है। ऐसा मालूम होता है कि इस शहर की तीन ही सम्तें हैं। हाल ही में जब एक मुद्दत के बाद मेरा इस तरफ़ एक ज़रूरत से जाना हुआ तो मुझको शहर का ये इलाक़ा बिलकुल वैसा ही नज़र आया जैसा मेरे बचपन में था। (१) मुझे इस तरफ़ जाने की ज़रूरत नहीं थी, लेकिन अपनी वालिदा की वजह से मजबूर हो गया। बरसों पहले वो बुढ़ापे के सबब चलने फिरने से माज़ूर हो गई थीं, फिर उनकी आँखों की रोशनी भी क़रीब क़रीब जाती रही और ज़हन भी माऊफ़ सा हो गया। माज़ूरी का ज़माना शुरू होने के बाद भी एक अर्से तक वो मुझको दिन रात में तीन चार मर्तबा अपने पास बुला कर कपकपाते हाथों से सर से पैर तक टटोलती थीं। दर असल मेरे पैदा होने के बाद ही से उनको मेरी सेहत ख़राब मालूम होने लगी थी। कभी उन्हें मेरा बदन बहुत ठंडा महसूस होता, कभी बहुत गर्म, कभी मेरी आवाज़ बदली हुई मालूम होती और कभी मेरी आँखों की रंगत में तग़य्युर नज़र आता। हकीमों के एक पुराने ख़ानदान से ताल्लुक़ रखने की वजह से उनको बहुत सी बीमारीयों के नाम और ईलाज ज़बानी याद थे और कुछ-कुछ दिन बाद वो मुझे किसी नए मर्ज़ में मुबतला क़रार देकर उस के ईलाज पुर इसरार करती थीं। उनकी माज़ूरी के इबतिदाई ज़माने में दो तीन बार ऐसा इत्तिफ़ाक़ हुआ कि मैं किसी काम में पड़ कर उनके कमरे में जाना भूल गया, तो वो मालूम नहीं किस तरह ख़ुद को खींचती हुई कमरे के दरवाज़े तक ले आएं। कुछ और ज़माना गुज़रने के बाद जब उनकी रही सही ताक़त भी जवाब दे गई तो एक दिन उनके मुआलिज ने महिज़ ये आज़माने की ख़ातिर कि आया उनके हाथ पैरों में अब भी कुछ सकत बाक़ी है, मुझे दिन-भर उनके पास नहीं जाने दिया और वो ब-ज़ाहिर मुझसे बे-ख़बर रहीं, लेकिन रात गए उनके आहिस्ता-आहिस्ता कराहने की आवाज़ सुनकर जब मैं लपकता हुआ उनके कमरे में पहुंचा तो वो दरवाज़े तक का आधा रास्ता तै कर चुकी थीं। उनका बिस्तर, जो इन्होंने मेरे वालिद के मरने के बाद से ज़मीन पर बिछाना शुरू कर दिया था, उनके साथ घिसटता हुआ चला आया था। देखने में ऐसा मालूम होता था कि बिस्तर ही उनको खींचता हुआ दरवाज़े की तरफ़ लिए जा रहा था। मुझे देखकर इन्होंने कुछ कहने की कोशिश की लेकिन तकान के सबब बेहोश हो गईं और कई दिन तक बेहोश रहीं। उनके मुआलिज ने बार-बार अपनी ग़लती का एतराफ़ और इस आज़माईश पर पछतावे का इज़हार किया, इसलिए कि इस के बाद ही से मेरी वालिदा की बीनाई और ज़हन ने जवाब देना शुरू किया, यहां तक कि रफ़्ता-रफ़्ता उनका वजूद और अदम बराबर हो गया। उनके मुआलिज को मरे हुए भी एक अरसा गुज़र गया। लेकिन हाल ही में एक रात मेरी आँख खुली तो मैंने देखा कि वो मेरे पायँती ज़मीन पर बैठी हुई हैं और एक हाथ से मेरे बिस्तर को टटोल रही हैं। मैं जल्दी से उठकर बैठ गया।
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