वक़ार महल की छतें गिर चुकी हैं लेकिन दीवारें जूं की तूं खड़ी हैं। जिन्हें तोड़ने के लिए बीसियों जवान मज़दूर कई एक साल से कुदाल चलाने में मसरूफ़ हैं। वक़ार महल न्यू कॉलोनी के मर्कज़ में वाक़्य है न्यू कॉलोनी के किसी हिस्से से देखिए। खिड़की से सर निकालिए, रोशन दान से झांकिए। टियर्स से नज़र दोड़ाईए। हर सूरत में वक़ार महल सामने आ खड़ा होता है। मज़बूत, वीरान, बोझल, रोबदार, डरावना सर-बुलंद, खोखला। अज़ीम। ऐसा मालूम होता है कि सारी न्यू कॉलोनी आसेब-ज़दा हो और वक़ार महल आसीब हो। नौजवान देखते हैं तो दिलों में ग़ुस्सा उभरता है। न्यू कॉलोनी के चेहरे का फोड़ा। रिसती बस्ती कॉलोनी में आसारे-ए-क़दीमा। चेहरे नफ़रत से बिगड़ जाते हैं , हटाओ उसे। लेकिन वो महल से अपनी निगाहें हटा नहीं सकते।
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