बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना

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बस-कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना
आदमी को भी मुयस्सर नहीं इंसाँ होना

गिर्या चाहे है ख़राबी मिरे काशाने की
दर ओ दीवार से टपके है बयाबाँ होना [...]

कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो

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कभी तुम मोल लेने हम कूँ हँस हँस भाव करते हो
कभी तीर-ए-निगाह-ए-तुंद का बरसाव करते हो

कभी तुम सर्द करते हो दिलों की आग गर्मी सीं
कभी तुम सर्द-मेहरी सीं झटक कर बाव करते हो [...]

पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात

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पहले नहाई ओस में फिर आँसुओं में रात
यूँ बूँद बूँद उतरी हमारे घरों में रात

कुछ भी दिखाई देता नहीं दूर दूर तक
चुभती है सूइयों की तरह जब रगों में रात [...]

कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी सो मैं ने जीवन वार दिया

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कुछ इश्क़ था कुछ मजबूरी थी सो मैं ने जीवन वार दिया
मैं कैसा ज़िंदा आदमी था इक शख़्स ने मुझ को मार दिया

इक सब्ज़ शाख़ गुलाब की था इक दुनिया अपने ख़्वाब की था
वो एक बहार जो आई नहीं उस के लिए सब कुछ हार दिया [...]

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