मैं नहीं जानती। मैं तो मज़े में चली जा रही थी। मेरे हाथ में काले रंग का एक पर्स था, जिसमें चांदी के तार से कुछ कढा हुआ था और मैं हाथ में उसे घुमा रही थी। कुछ देर में उचक कर फुटपाथ पर हो गई, क्योंकि मेन रोड पर से इधर आने वाली बसें अड्डे पर पहुँचने और टाइम कीपर को टाइम देने के लिए यहाँ आ कर एक दम रास्ता काटती थीं। इसलिए इस मोड़ पर आए दिन हादसे होते रहते थे। बस तो ख़ैर नहीं आई लेकिन उस पर भी एक्सीडेंट हो गया। मेरे दाएं तरफ़ सामने के फुटपाथ के उधर मकान था और मेरे उल्टे हाथ स्कूल की सीमेंट से बनी हुई दीवार, जिसके उस पार मिशनरी स्कूल के फादर लोग ईस्टर के सिलसिले में कुछ सजा संवार रहे थे। मैं अपने आप से बेख़बर थी, लेकिन यकायक न जाने मुझे क्यों ऐसा महसूस होने लगा कि मैं एक लड़की हूँ जवान लड़की। ऐसा क्यों होता है, ये मैं नहीं जानती। मगर एक बात का मुझे पता है हम लड़कियाँ सिर्फ़ आँखों से नहीं देखतीं। जाने परमात्मा ने हमारा बदन कैसे बनाया है कि उसका हर पोर देखता, महसूस करता, फैलता और सिमटता है। गुदगुदी करने वाला हाथ लगता भी नहीं कि पूरा शरीर हंसने-मचलने लगता है। कोई चोरी चुपके देखे भी तो यूँ लगता है जैसे हज़ारों सुइयाँ एक साथ चुभने लगीं, जिनसे तकलीफ़ होती है और मज़ा भी आता है अलबत्ता कोई सामने बेशर्मी से देखे तो दूसरी बात है। उस दिन कोई मेरे पीछे आ रहा था। उसे मैंने देखा तो नहीं, लेकिन एक सनसनाहट सी मेरे जिस्म में दौड़ गई। जहाँ मैं चल रही थी, वहाँ बराबर में एक पुरानी शेवरलेट गाड़ी आ कर रुकी, जिसमें अधेड़ उम्र का बल्कि बूढ़ा मर्द बैठा था। वो बहुत मो'तबर सूरत और रोब-दाब वाला आदमी था, जिसके चेहरे पर उम्र ने ख़ूब लड्डू खेली थी। उसकी आँख थोड़ी दबी हुई थी, जैसे कभी उसे लक़वा हुआ हो और विटामिन सी और बी काम्पलेक्स के टीके वग़ैरा लगवाने, शेर की चर्बी की मालिश करने या कबूतर का ख़ून मलने से ठीक तो हो गया हो, लेकिन पूरा नहीं। ऐसे लोगों पर मुझे बड़ा तरस आता है क्योंकि वो आँख नहीं मारते और फिर भी पकड़े जाते हैं। जब उसने मेरी तरफ़ देखा तो पहले मैं भी उसे ग़लत समझ गई, लेकिन चूँकि मेरे अपने घर में चचा गोविंद उसी बीमारी के मरीज़ हैं, इसलिए मैं असल वजह जान गई। देर तक मैं अपने आप को शर्मिंदा सी महसूस करती रही। उस बुढ्ढे की दाढ़ी थी जिसमें रुपये के बराबर एक सपाट सी जगह थी। ज़रूर किसी ज़माने में वहाँ उसके कोई बड़ा सा फोड़ा निकला होगा जो ठीक तो हो गया लेकिन बालों को जड़ से ग़ायब कर गया। उसकी दाढ़ी सर के बालों से ज़्यादा सफ़ेद थी। सर के बाल खिचड़ी थे। सफ़ेद ज़्यादा और काले कम, जैसे किसी ने माश की दाल थोड़ी और चावल ज़्यादा डाल दिए हों। उसका बदन भारी था, जैसा कि इस उम्र में सब का हो जाता है। मेरा भी हो जाएगा क्या मैं टर्न गों कगी? लोग कहते हैं तुम्हारी माँ मोटी है, तुम भी आगे चल कर मोटी हो जाओगे अ'जीब बात है न कि कोई उम्र के साथ आप ही आप माँ हो जाए या बाप। बुढढे के क़द का अलबत्ता पता न चला, क्योंकि वो मोटर में ढेर था। कार रुकते ही उसने कहा, सुनो। मैं रुक गई, उसकी बात सुनने के लिए थोड़ा झुक भी गई।
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