माई जनते

Shayari By

माई जनते स्लीपर फटफटाती घिसटती कुछ इस अंदाज़ में अपने मैले चिकट में दाख़िल हुआ ही थी कि सब घर वालों को मालूम हो गया कि वो आ पहुंची है। वो रहती उसी घर में थी जो ख़्वाजा करीम बख़्श मरहूम का था अपने पीछे काफ़ी जायदाद एक बेवा और दो जवान बच्चियां छोड़ गया था।
आदमी पुरानी वज़अ का था। जूंही ये लड़कियां नौ दस बरस की हुईं उनको घर की चार दीवारी में बिठा दिया और पहरा भी ऐसा कि वो खिड़की तक के पास खड़ी नहीं हो सकतीं मगर जब वो अल्लाह को प्यारा हुआ तो उनको आहिस्ता आहिस्ता थोड़ी सी आज़ादी हो गई। अब वह लुक छुप के नावेल भी पढ़ती थीं। अपने कमरे के दरवाज़े बंद कर के पॉउडर और लिप स्टक भी लगाती थीं। उनके पास विलायत की सी हुई अंगिया भी थीं। मालूम नहीं ये सब चीज़ें कहाँ से मिल गई थीं। बहरहाल इतना ज़रूर है कि उनकी माँ को जो अभी तक अपने ख़ाविंद के सदमे को भूल न सकी थी इन बातों का कोई इ’ल्म नहीं था। वो ज़्यादातर क़ुरआन मजीद की तिलावत और पाँच वक़्त की नमाज़ों की अदायगी में मसरूफ़ रहती और अपने मरहूम शौहर की रूह को सवाब पहुंचाती रहती।

घर में कोई मर्द नौकर नहीं था, मरहूम के बाप की ज़िंदगी में, न मरहूम के ज़माने में, ये उनकी पुरानी वज़ा’दारी का सबूत है। आमतौर पर एक या दो मुलाज़िमाएं होती थीं जो बाहर से सौदा सुल्फ़ भी लाएं और घर का काम भी करें।
दसवीं जमात ख़ुद मरहूम ने अपनी बच्चियों को पढ़ा कर पास कराई थी। कॉलिज की ता’लीम के वो यकसर ख़िलाफ़ थे, वो उनकी फ़ौरन शादी कर देना चाहते थे मगर ये तमन्ना उनके दिल ही में रही एक दिन अचानक फ़ालिज गिरा। इस मूज़ी मर्ज़ ने उनके दिल पर असर किया और वो एक घंटे के अंदर अंदर राहि-ए-मुल्क-ए-अदम हुए। [...]

बी-ज़मानी बेगम

Shayari By

ज़मीन शक़ हो रही है। आसमान काँप रहा है। हर तरफ़ धुआँ ही धुआँ है। आग के शोलों में दुनिया उबल रही है। ज़लज़ले पर ज़लज़ले आ रहे हैं। ये क्या हो रहा है?
“तुम्हें मालूम नहीं?”

“नहीं तो।”
“लो सुनो… दुनिया भर को मालूम है।” [...]

क़ब्ज़

Shayari By

नए लिखे हुए मुकालमे का काग़ज़ मेरे हाथ में था। ऐक्टर और डायरेक्टर कैमरे के पास सामने खड़े थे। शूटिंग में अभी कुछ देर थी। इस लिए कि स्टूडियो के साथ वाला साबुन का कारख़ाना चल रहा था। हर रोज़ इस कारख़ाने के शोर की बदौलत हमारे सेठ साहब का काफ़ी नुक़्सान होता था। क्योंकि शूटिंग के दौरान में जब इका ईकी उस कारख़ाने की कोई मशीन चलना शुरू हो जाती। तो कई कई हज़ार फ़ुट फ़िल्म का टुकड़ा बेकार हो जाता और हमें नए सिरे से कई सीनों की दुबारा शूटिंग करना पड़ती।
डायरेक्टर साहब हीरो और हीरोइन के दरमयान कैमरे के पास खड़े सिगरट पी रहे थे और मैं सुस्ताने की ख़ातिर कुर्सी पर टांगों समेत बैठा था। वो यूं कि मेरी दोनों टांगें कुर्सी की नशिस्त पर थीं और मेरा बोझ नशिस्त की बजाय उन पर था। मेरी इस आदत पर बहुत लोगों को एतराज़ है मगर ये वाक़िया है कि मुझे असली आराम सिर्फ़ इसी तरीक़े पर बैठने से मिलता है।

नेना जिस की दोनों आँखें भैंगी थीं डायरेक्टर साहब के पास आया और कहने लगा। “साहब, वो बोलता है कि थोड़ा काम बाक़ी रह गया है फिर शोर बंद हो जाएगा।”
ये रोज़मर्रा की बात थी जिस का मतलब ये था कि अभी आध घंटे तक कारख़ाने में साबुन कटते और उन पर ठप्पे लगते रहेंगे। चुनांचे डायरेक्टर साहब हीरो और हीरोइन समेत स्टूडीयो से बाहर चले गए। में वहीं कुर्सी पर बैठा रहा। [...]

मिस्टर मोईनुद्दीन

Shayari By

मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास ही मिस्टर मोईनुद्दीन आराम कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँकि वो इस के आदी नहीं थे। आमदन मा’क़ूल थी। कराची शहर में उनकी मोटरों की दुकान सबसे बड़ी थी। इस के इलावा सोसाइटी के ऊंचे हल्क़ों में उनका बड़ा नाम था। कई क्लबों के मेंबर थे। बड़ी बड़ी पार्टियों में उनकी शिरकत ज़रूरी समझी जाती थी।
साहिब-ए-औलाद थे, लड़का इंग्लिस्तान में ता’लीम हासिल कर रहा था। लड़की बहुत कमसिन थी, लेकिन बड़ी ज़हीन और ख़ूबसूरत। वो इस तरफ़ से भी बिल्कुल मुतमइन थे, लेकिन अपनी बीवी। मगर मुनासिब मालूम होता है कि पहले मिस्टर मोईनुद्दीन की शादी के मुतअ’ल्लिक़ चंद बातें बता दी जाएं।

मिस्टर मोईनुद्दीन के वालिद बंबई में रेशम के बहुत बड़े व्यापारी थे। यूँ तो वो रहने वाले लाहौर के थे मगर कारोबारी सिलसिले के बाइ’स बम्बई ही में मुक़ीम हो गए थे और यही उनका वतन बन गया था। मोईनुद्दीन जो उनका इकलौता बेटा था, ब-ज़ाहिर आशिक़ मिज़ाज नहीं था लेकिन मालूम नहीं वो कैसे और क्यों कर आदम जी बाटली वाली की मोटी मोटी ग़लाफ़ी आँखों वाली लड़की पर फ़रेफ़्ता हो गया। लड़की का नाम ज़ोहरा था, मुईन से मोहब्बत करती थी, मगर शादी में कई मुश्किलात हाएल थीं।
आदम जी बाटली वाला जो मुईन के वालिद का पड़ोसी और दोस्त भी था, बड़े पुराने ख़यालात का बोहरा था। वो अपनी लड़की की शादी अपने ही फ़िरक़े में करना चाहता था। चुनांचे ज़ोहरा और मुईन का मुआ’शक़ा बहुत देर तक बेनतीजा चलता रहा। इस दौरान में मोईनुद्दीन के वालिद का इंतक़ाल हो गया। माँ बहुत पहले मर चुकी थी। [...]

रामेशगर

Shayari By

मेरे लिए ये फ़ैसला करना मुश्किल था आया परवेज़ मुझे पसंद है या नहीं। कुछ दिनों से मैं उसके एक नॉवेल का बहुत चर्चा सुन रहा था। बूढ़े आदमी, जिनकी ज़िंदगी का मक़सद दावतों में शिरकत करना है उसकी बहुत तारीफ़ करते थे और बा'ज़ औरतें जो अपने शौहरों से बिगड़ चुकी थीं इस बात की क़ाइल थीं कि वो नॉवेल मुसन्निफ़ की आइन्दा शानदार अदबी ज़िंदगी का पेशख़ैमा है।
मैंने चंद रिव्यू पढ़े जो क़तअन मुतज़ाद थे। बा'ज़ नाक़िदों का ख़याल था कि मुसन्निफ़ ऐसा मेयारी नॉवेल लिख कर बेहतर नॉवेल निगारों की सफ़ में शामिल होगया है। मैंने जानबूझ कर ये नॉवेल न पढ़ा क्योंकि मेरे ज़ेहन में ये ख़याल समा गया है कि किसी ऐसी किताब को जो अदबी हल्क़ों में हलचल मचा दे एक साल ठहर कर पढ़ना चाहिए और हक़ीक़त ये है कि ये मियाद गुज़र जाने पर आप उसे उमूमन नज़र-अंदाज कर देंगे।

मेरी परवेज़ से एक दावत में मुलाक़ात हुई। मेरी मेज़बान दो अधेड़ अमरिकी औरतें थीं। दावत में एक जवान लड़की भी शरीक थी, जो ग़ालिबन मेज़बान की छोटी बहन थी। उसका नाम इफ़्फ़त था। वो ख़ासी तंदुरुस्त और क़द-आवर थी। वो ज़रा ज़्यादा तवाना और लंबी होती तो और भी भली मालूम होती।
परवेज़ भी मेरे पास बैठा था। उम्र यही कोई बाईस-तेईस साल, दरमियाना क़द, जिस्म की बनावट कुछ ऐसी थी कि वो नाटा मालूम होता। उसकी जिल्द सुर्ख़ थी जो उसके चेहरे की हड्डियों पर अकड़ी हुई सी दिखाई देती थी। नाक लंबी, आँखें नीलगूं और सर के बाल भूरे रंग के। वो भूरे रंग की जैकेट और ग्रे पतलून पहने था। [...]

बग़ैर इजाज़त

Shayari By

नईम टहलता टहलता एक बाग़ के अन्दर चला गया... उसको वहां की फ़ज़ा बहुत पसंद आई। घास के एक तख़्ते पर लेट कर उसने ख़ुद कलामी शुरू कर दी।
“कैसी पुरफ़िज़ा जगह है... हैरत है कि आज तक मेरी नज़रों से ओझल रही, नज़रें... ओझल...”

इतना कह कर वो मुस्कुराया।
नज़र हो तो चीज़ें नज़र भी नहीं आतीं... आह कि नज़र की बेनज़री! देर तक वो घास के इस तख़्ते पर लेटा और ठंडक महसूस करता रहा। लेकिन उसकी ख़ुद कलामी जारी थी... [...]

Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close