मुँह से कभी जुदा न होने वाला सिगार ऐश ट्रे में पड़ा हल्का हल्का धुआँ दे रहा था। पास ही मिस्टर मोईनुद्दीन आराम कुर्सी पर बैठे एक हाथ अपने चौड़े माथे पर रखे कुछ सोच रहे थे, हालाँकि वो इस के आदी नहीं थे। आमदन मा’क़ूल थी। कराची शहर में उनकी मोटरों की दुकान सबसे बड़ी थी। इस के इलावा सोसाइटी के ऊंचे हल्क़ों में उनका बड़ा नाम था। कई क्लबों के मेंबर थे। बड़ी बड़ी पार्टियों में उनकी शिरकत ज़रूरी समझी जाती थी। साहिब-ए-औलाद थे, लड़का इंग्लिस्तान में ता’लीम हासिल कर रहा था। लड़की बहुत कमसिन थी, लेकिन बड़ी ज़हीन और ख़ूबसूरत। वो इस तरफ़ से भी बिल्कुल मुतमइन थे, लेकिन अपनी बीवी। मगर मुनासिब मालूम होता है कि पहले मिस्टर मोईनुद्दीन की शादी के मुतअ’ल्लिक़ चंद बातें बता दी जाएं। मिस्टर मोईनुद्दीन के वालिद बंबई में रेशम के बहुत बड़े व्यापारी थे। यूँ तो वो रहने वाले लाहौर के थे मगर कारोबारी सिलसिले के बाइ’स बम्बई ही में मुक़ीम हो गए थे और यही उनका वतन बन गया था। मोईनुद्दीन जो उनका इकलौता बेटा था, ब-ज़ाहिर आशिक़ मिज़ाज नहीं था लेकिन मालूम नहीं वो कैसे और क्यों कर आदम जी बाटली वाली की मोटी मोटी ग़लाफ़ी आँखों वाली लड़की पर फ़रेफ़्ता हो गया। लड़की का नाम ज़ोहरा था, मुईन से मोहब्बत करती थी, मगर शादी में कई मुश्किलात हाएल थीं। आदम जी बाटली वाला जो मुईन के वालिद का पड़ोसी और दोस्त भी था, बड़े पुराने ख़यालात का बोहरा था। वो अपनी लड़की की शादी अपने ही फ़िरक़े में करना चाहता था। चुनांचे ज़ोहरा और मुईन का मुआ’शक़ा बहुत देर तक बेनतीजा चलता रहा। इस दौरान में मोईनुद्दीन के वालिद का इंतक़ाल हो गया। माँ बहुत पहले मर चुकी थी।
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