है बिखरने को ये महफ़िल-ए-रंग-ओ-बू तुम कहाँ जाओगे हम कहाँ जाएँगे हर तरफ़ हो रही है यही गुफ़्तुगू तुम कहाँ जाओगे हम कहाँ जाएँगे हर मता-ए-नफ़स नज़्र-ए-आहंग की हम को याराँ हवस थी बहुत रंग की गुल-ज़मीं से उबलने को है अब लहू तुम कहाँ जाओगे हम कहाँ जाएँगे
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