अमीर-ज़ादों से दिल्ली के मिल न ता-मक़्दूर

Shayari By

अमीर-ज़ादों से दिल्ली के मिल न ता-मक़्दूर
कि हम फ़क़ीर हुए हैं इन्हीं की दौलत से

अमीर अर्थात सरदार, हाकिम, धनवान। ग़रीब अर्थात निर्धन,परदेसी। दौलत यानी धन, माल, इक़बाल, नसीब, साम्राज्य, हुकूमत, जीत, ख़ुशी, औलाद। मीर का यह शे’र संलग्नकों के कारण दिलचस्प भी है और अजीब भी। इस शे’र में मीर ने संदर्भों से अच्छा विषय पैदा किया है। इसके विधानों में अमीर ज़ादों, ग़रीब और दौलत बहुत अर्थपूर्ण हैं और फिर उनकी उपयुक्तता दिल्ली से भी ख़ूब है। मीर ख़ुद से कहते हैं कि दिल्ली के अमीर ज़ादों की संगति से बचो क्योंकि हम उन ही के दौलत से ग़रीब हुए हैं। अगर दौलत को मात्र धन और माल के मायने में लिया जाए तो शे’र के यह मायने होते हैं कि मीर दिल्ली के अमीर ज़ादों से दूर रहो क्योंकि हम इन ही के धन-दौलत से ग़रीब हुए हैं। मगर मीर जितने सहल-पसंद थे उतने ही उनके अशआर में पेचीदगी और तहदारी भी है। दरअसल मीर का कहना ये है कि चूँकि दिल्ली के अमीर ज़ादों के नसीब और उनके इक़बाल की वजह से ख़ुदा उन पर मेहरबान है और ख़ुदा उनको दौलत से माला-माल करना चाहता है इसलिए हमारे हिस्से की दौलत भी उनको अता की जिसकी वजह से हम निर्धन हो गए। यदि मार्क्सवाद के दृष्टिकोण से देखा जाए तो मीर ये कहते हैं कि चूँकि दिल्ली के अमीर भौतिकवादी हैं और धन संचय करने की कोई युक्ति नहीं छोड़ते इसलिए उन्होंने हमारा धन हमसे लूट कर हमें ग़रीब बना दिया है।
[...]

Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close