शारदा

Shayari By

नज़ीर ब्लैक मार्कीट से विस्की की बोतल लाने गया। बड़े डाकख़ाने से कुछ आगे बंदरगाह के फाटक से कुछ उधर सिगरेट वाले की दुकान से उसको स्काच मुनासिब दामों पर मिल जाती थी। जब उसने पैंतीस रुपये अदा करके काग़ज़ में लिपटी हुई बोतल ली तो उस वक़्त ग्यारह बजे थे दिन के। यूं तो वो रात को पीने का आदी था मगर उस रोज़ मौसम ख़ुशगवार होने के बाइ’स वो चाहता था कि सुबह ही से शुरू करदे और रात तक पीता रहे।
बोतल हाथ में पकड़े वो ख़ुश ख़ुश घर की तरफ़ रवाना हुआ। उसका इरादा था कि बोरीबंदर के स्टैंड से टैक्सी लेगा। एक पैग उसमें बैठ कर पिएगा और हल्के हल्के सुरूर में घर पहुंच जाएगा। बीवी मना करेगी तो वो उससे कहेगा, “मौसम देख कितना अच्छा है। फिर वो उसे वो भोंडा सा शे’र सुनाएगा

की फ़रिश्तों की राह अब्र ने बंद
जो गुनाह कीजिए सवाब है आज [...]

उसका पति

Shayari By

लोग कहते थे कि नत्थू का सर इसलिए गंजा हुआ है कि वो हर वक़्त सोचता रहता है। इस बयान में काफ़ी सदाक़त है क्योंकि सोचते वक़्त नत्थू सर खुजलाया करता है।
उसके बाल चूँकि बहुत खुरदरे और ख़ुश्क हैं और तेल न मलने के बाइस बहुत ख़स्ता हो गए हैं, इसलिए बार बार खुजलाने से उस के सर का दरमियानी हिस्सा बालों से बिल्कुल बेनियाज़ हो गया है। अगर उसका सर हर रोज़ धोया जाता तो ये हिस्सा ज़रूर चमकता। मगर मैल की ज़्यादती के बाइस उसकी हालत बिल्कुल उस तवे की सी हो गई है जिस पर हर रोज़ रोटियां पकाई जाएं मगर उसे साफ़ न किया जाये।

नत्थू भट्टे पर ईंटें बनाने का काम करता था। यही वजह है कि वो अक्सर अपने ख़यालात को कच्ची ईंटें समझता था और किसी पर फ़ौरन ही ज़ाहिर नहीं किया करता था। उसका ये उसूल था कि ख़याल को अच्छी तरह पका कर बाहर निकालना चाहिए ताकि जिस इमारत में भी वो इस्तेमाल हो उसका एक मज़बूत हिस्सा बन जाये।
गांव वाले उसके ख़यालात की क़द्र करते थे और मुश्किल बात में उससे मशवरा लिया करते थे, लेकिन इस क़दर हौसला-अफ़ज़ाई से नत्थू अपने आपको अहम नहीं समझने लगा था। जिस तरह गांव में शंभू का काम हर वक़्त लड़ते-झगड़ते रहना था, उसी तरह उसका काम हर वक़्त दूसरों को मशवरा देते रहना था। [...]

डरपोक

Shayari By

मैदान बिल्कुल साफ़ था, मगर जावेद का ख़याल था कि म्युनिसिपल कमेटी की लालटेन जो दीवार में गड़ी है, उसको घूर रही है। बार बार वो उस चौड़े सहन को जिस पर नानक शाही ईंटों का ऊंचा-नीचा फ़र्श बना हुआ था, तय कर के उस नुक्कड़ वाले मकान तक पहुंचने का इरादा करता जो दूसरी इमारतों से बिल्कुल अलग थलग था। मगर ये लालटेन जो मस्नूई आँख की तरह हर तरफ़ टकटकी बांधे देख रही थी, उसके इरादे को मुतज़लज़ल कर देती और वो इस बड़ी मोरी के इस तरफ़ हट जाता जिसको फांद कर वो सहन को चंद क़दमों में तय कर सकता था... सिर्फ़ चंद क़दमों में!
जावेद का घर इस जगह से काफ़ी दूर था। मगर ये फ़ासला बड़ी तेज़ी से तय कर के यहां पहुंच गया था। उसके ख़यालात की रफ़्तार उसके क़दमों की रफ़्तार से ज़्यादा तेज़ थी। रास्ते में उसने बहुत सी चीज़ों पर ग़ौर किया। वो बेवक़ूफ़ नहीं था। उसे अच्छी तरह मालूम था कि एक बेस्वा के पास जा रहा है और उसको इस बात का भी पूरा शुऊर था कि वो किस ग़रज़ से उसके यहां जाना चाहता है।

वो औरत चाहता था। औरत, ख़्वाह वो किसी शक्ल में हो। औरत की ज़रूरत उसकी ज़िंदगी में यक-ब-यक पैदा नहीं हुई थी। एक ज़माने से ये ज़रूरत उसके अंदर आहिस्ता आहिस्ता शिद्दत इख़्तियार करती रही थी और अब दफ़अ’तन उसने महसूस किया था कि औरत के बग़ैर वो एक लम्हा ज़िंदा नहीं रह सकता। औरत उसको ज़रूर मिलनी चाहिए, ऐसी औरत जिसकी रान पर हौले से तमांचा मार कर वह उसकी आवाज़ सुन सके। ऐसी औरत जिससे वो वाहियात क़िस्म की गुफ़्तगु कर सके।
जावेद पढ़ा लिखा होशमंद आदमी था। हर बात की ऊंच-नीच समझता था। मगर इस मुआ’मले में मज़ीद ग़ौर-ओ-फ़िक्र करने के लिए तैयार नहीं था। उसके दिल में एक ऐसी ख़्वाहिश पैदा हुई थी, जो उसके लिए नई न थी। औरत की क़ुरबत हासिल करने की ख़्वाहिश इससे पहले कई बार उसके दिल में पैदा हुई और इस ख़्वाहिश को पूरा करने के लिए इंतिहाई कोशिशों के बाद जब उसे ना-उम्मीदी का सामना करना पड़ा तो वो इस नतीजे पर पहुंचा कि उसकी ज़िंदगी में सालिम औरत कभी नहीं आएगी और अगर उसने इस सालिम औरत की तलाश जारी रखी तो किसी रोज़ वो दीवाने कुत्ते की तरह राह चलती औरत को काट खाएगा। [...]

क़ादिरा क़साई

Shayari By

ईदन बाई आगरे वाली छोटी ईद को पैदा हुई थी, यही वजह है कि उसकी माँ ज़ुहरा जान ने उसका नाम इसी मुनासिबत से ईदन रखा। ज़ुहरा जान अपने वक़्त की बहुत मशहूर गाने वाली थी, बड़ी दूर दूर से रईस उसका मुजरा सुनने के लिए आते थे।
कहा जाता है कि मेरठ के एक ताजिर अब्दुल्लाह से जो लाखों में खेलता था, उसे मुहब्बत हो गई, उस ने चुनांचे इसी जज़्बे के मातहत अपना पेशा छोड़ दिया। अब्दुल्लाह बहुत मुतअस्सिर हुआ और उस की माहवार तनख़्वाह मुक़र्रर कर दी,कोई तीन सौ के क़रीब। हफ़्ते में तीन मर्तबा उसके पास आता, रात ठहरता, सुबह सवेरे वहाँ से रवाना हो जाता।

जो शख़्स ज़ुहरा जान को जानते हैं और आगरे के रहने वाले हैं उनका ये बयान है कि उसका चाहने वाला एक बढ़ई था मगर वो उसे मुँह नहीं लगाती थी। वो बेचारा ज़रूरत से ज़्यादा मेहनत-ओ-मशक़्क़त करता और तीन चार महीने के बाद रुपये जमा कर के ज़ुहरा जान के पास जाता मगर वो उसे धुतकार देती।
आख़िर एक रोज़ उस बढ़ई को ज़ुहरा जान से मुफ़स्सल गुफ़्तुगू करने का मौक़ा मिल ही गया। पहले तो वो कोई बात न कर सका, इसलिए कि उस पर अपनी महबूबा के हुस्न का रो’ब तारी था लेकिन उसने थोड़ी देर के बाद जुरअत से काम लिया और उससे कहा, “ज़ुहरा जान, मैं ग़रीब आदमी हूँ, मुझे मालूम है कि बड़े बड़े धन वाले तुम्हारे पास आते हैं और तुम्हारी हर अदा पर सैंकड़ों रुपये निछावर करते हैं लेकिन तुम्हें शायद ये बात मालूम नहीं कि ग़रीब की मुहब्बत धन दौलत वालों के लाखों रूपयों से बड़ी होती है। मैं तुमसे मुहब्बत करता हूँ, मालूम नहीं क्यों?” [...]

हारता चला गया

Shayari By

लोगों को सिर्फ़ जीतने में मज़ा आता है लेकिन उसे जीत कर हार देने में लुत्फ़ आता है।
जीतने में उसे कभी इतनी दिक़्क़त महसूस नहीं हुई लेकिन हारने में अलबत्ता उसे कई दफ़ा काफ़ी तग-ओ-दो करना पड़ी। शुरू शुरू में बैंक की मुलाज़मत करते हुए जब उसे ख़याल आया कि उसके पास भी दौलत के अंबार होने चाहिऐं तो उसके अ’ज़ीज़-ओ-अ’का़रिब और दोस्तों ने इस ख़याल का मज़हका उड़ाया था मगर जब वो बैंक की मुलाज़मत छोड़ कर बंबई चला गया तो थोड़े ही अ’र्सा के बाद उसने अपने दोस्तों और अ’ज़ीज़ों की रुपये पैसे से मदद करना शुरू कर दी।

बंबई में उसके लिए कई मैदान थे मगर उसने फ़िल्म के मैदान को मुंतख़ब किया। इसमें दौलत थी, शौहरत थी। इसमें चल फिर कर वो दोनों हाथों से दौलत समेट सकता था और दोनों ही हाथों से लुटा भी सकता था। चुनांचे अभी तक इसी मैदान का सिपाही है।
लाखों नहीं करोड़ों रुपया उसने कमाया और लुटा दिया। कमाने में इतनी देर न लगी जितनी लुटाने में। एक फ़िल्म के लिए गीत लिखे,लाख रुपये धरवा लिये। लेकिन एक लाख रूपों को रन्डियों के कोठों पर, भड़वों की महफ़िलों में, घोड़ दौड़ के मैदानों और क़िमार ख़ानों में हारते हुए उसे काफ़ी देर लगी। [...]

Don't have an account? Sign up

Forgot your password?

Error message here!

Error message here!

Hide Error message here!

Error message here!

OR
OR

Lost your password? Please enter your email address. You will receive a link to create a new password.

Error message here!

Back to log-in

Close