हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली
By January 1, 2017
हद-ए-शहर से निकली तो गाँव गाँव चली
कुछ यादें मेरे संग पाँव पाँव चली
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।
कुछ यादें मेरे संग पाँव पाँव चली
सफ़र जो धूप का किया तो तजुर्बा हुआ
वो जिंदगी ही क्या जो छाँव छाँव चली।
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