किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे

By January 1, 2017
किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे
किसी कली ने भी देखा न आँख भर के मुझे

गुज़र गयी जरस-ए-गुल उदास करके मुझे



मैं सो रहा था किसी याद के शबिस्ताँ में

जगा के छोड़ गए काफिले सहर के मुझे।



शब्दार्थ:
जरस-ए-गुल = फूलों की लड़ी
शबिस्ताँ = बिस्तर
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