रोज़ आ जाते हो तुम नींद की मुंडेरों पर

By January 1, 2017
रोज़ आ जाते हो तुम नींद की मुंडेरों पर
रोज़ आ जाते हो तुम नींद की मुंडेरों पर

बादलों में छुपे एक ख़्वाब का मुखड़ा बन कर



खुद को फैलाओ कभी आसमाँ की बाँहों सा

तुम में घुल जाए कोई चाँद का टुकड़ा बन कर।
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