उर्दू
By rashid-banarasiApril 22, 2024
जबीन-ए-वक़्त पर कैसी शिकन है हम नहीं समझे
कोई क्यूँ कर हरीफ़-ए-इल्म-ओ-फ़न है हम नहीं समझे
किसी भी शम्अ' से बे-ज़ार क्यूँ हो कोई परवाना
ये क्या इस दौर का दीवाना-पन है हम नहीं समझे
बहुत समझे थे हम इस दौर की फ़िरक़ा-परस्ती को
ज़बाँ भी आज शैख़-ओ-बरहमन है हम नहीं समझे
अगर उर्दू पे भी इल्ज़ाम है बाहर से आने का
तो फिर हिन्दोस्ताँ किस का वतन है हम नहीं समझे
चमन का हुस्न तो हर रंग के फूलों से है 'राशिद'
कोई भी फूल क्यूँ नंग-ए-चमन है हम नहीं समझे
कोई क्यूँ कर हरीफ़-ए-इल्म-ओ-फ़न है हम नहीं समझे
किसी भी शम्अ' से बे-ज़ार क्यूँ हो कोई परवाना
ये क्या इस दौर का दीवाना-पन है हम नहीं समझे
बहुत समझे थे हम इस दौर की फ़िरक़ा-परस्ती को
ज़बाँ भी आज शैख़-ओ-बरहमन है हम नहीं समझे
अगर उर्दू पे भी इल्ज़ाम है बाहर से आने का
तो फिर हिन्दोस्ताँ किस का वतन है हम नहीं समझे
चमन का हुस्न तो हर रंग के फूलों से है 'राशिद'
कोई भी फूल क्यूँ नंग-ए-चमन है हम नहीं समझे
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