नज़्म शायरी
कविता के कला को गले लगाना
नज़्म शायरी की मंगलभरी दुनिया में डूबें, जहाँ प्रत्येक पंक्ति एक अद्वितीय कहानी कहती है और भावनाओं का विविधतम वर्णन करती है। संरचित और वाक्पूर्ण संयोजनों के माध्यम से, नज़्म शायरी ज़ीवन अनुभूतियों की महत्वपूर्णता को विवरणात्मक और सुंदरता से आवष्यक़ी रुप से पकड़ती है, जिसने इसे एक समयहीन कविता की रूपरेखा बनाया।
नज़र पड़ती है जिस पर भी दरख़्शाँ देखता हूँ मैं
फ़ज़ाओं में ख़ुशी का रक़्स-ए-'उर्यां देखता हूँ मैं
वतन को इस घड़ी फ़रहत-बदामाँ देखता हूँ मैं
'इलाज-ए-तंगी-ए-दामान-ए-याराँ चाहता हूँ मैं
निफ़ाक़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ को गुरेज़ाँ चाहता हूँ मैं
मुनव्वर सीना हो जाए फ़रोग़-ए-शम'-ए-उल्फ़त से
दिल-ए-अहल-ए-वतन को भी फ़रोज़ाँ चाहता हूँ मैं
अंधेरा घर में हो बाहर उजाला हो तो क्या हासिल
वतन वालो दिलों में भी उजाला चाहता हूँ मैं
- abdul-qayyum-zaki-aurangabadi
मुझे तुम ग़ौर से देखो
मिरी आँखों में झाँको तुम
मिरी ज़ुल्फ़ों से उलझो तुम
तक़ाज़े रूह के अपने
तक़ाज़े जिस्म के अपने
करो पूरे इजाज़त है
मगर तुम को इजाज़त ये
फ़क़त ख़्वाबों की हद तक है
- abdul-mannan-samadi
धूप में सब के चेहरे काले
कैसी गर्मी कैसी धूप
सब ने बदला अपना रूप
थोड़ी देर ठहर कर चलना
ठंडा पानी मुँह पर मलना
सर पर अपने कपड़ा रखना
रक्षा ले कर आगे बढ़ना
गर्मी से बेहाल हुए हैं
सूखे सारे ताल हुए हैं
पेट का ईंधन यूँ न भरना
ऐसे वैसे काम न करना
नाम ख़ुदा का हर दम लेना
उस की क़ुदरत रोज़ी देना
रिक्शे वाले रिक्शे वाले
धूप में सब के चेहरे काले
- abdul-mannan-samadi
तो ये सोचता हूँ
कि क्यों सब्ज़ आँखें
तुम्हारी मुझे देखती हैं
अगर हो सके तो उन्हें ये
बता दो
कि महरम नहीं हूँ
मैं उन के लिए
- abdul-mannan-samadi
निगाहें तक रही हैं
क्यों
मुझे क्यों देर से सब की
इसी मैं
सोच में गुम था
अचानक फिर
किसी ने कान में
आ कर
कहा धीरे से
ये मुझ से
अरे 'मन्नान'
'ऐनक
कहीं गुम हो गई
क्या
- abdul-mannan-samadi
या'नी सब की आँख का तारा मेरा छोटा भाई है
बंदर बन कर भालू बन कर
सब को नाच दिखाता है
गली गली का इक इक बच्चा
उस का साथ निभाता है
आँगन आँगन शोर मचा कर
दिल सब का बहलाता है
बॉलिंग करना सीख गया है
बैटिंग करना सीख गया है
चौके छक्के मार रहा है
जीत रहा है हार रहा है
उस की सुब्ह है उस की शाम
घर घर जाना उस का काम
घर वालों की जान है वो
ख़ुद अपनी पहचान है वो
नन्हा मुन्ना प्यारा प्यारा मेरा छोटा भाई है
या'नी सब की आँख का तारा मेरा छोटा भाई है
- abdul-mannan-samadi
क्या मैं गुड़िया दिखाई देती हूँ
मेरा अपना वुजूद कोई नहीं
मेरी गोयाई मेरी बीनाई
सिर्फ़ धोका नज़र का धोका है
भर गया दिल तो ताक़ में रख कर
भूल जाते हो तुम
कि मैं क्या हूँ
- abdul-mannan-samadi
कि मेरे बे-सबब
हँसने की आख़िर वजह क्या है
जानते हो तुम
कि दीवाना नहीं हूँ मैं
मगर फिर भी कभी ग़मगीं नहीं होता
उदासी मेरे चेहरे से
कभी ज़ाहिर नहीं होती
मैं ख़ुद हैरान हूँ
क्या है
बला है
या ख़ुदा का मो'जिज़ा है
- abdul-mannan-samadi
जो अक्सर मुझ से मिलती है
जिस का कि नूरानी चेहरा
जिस की नीली नीली आँखें
तुम से मिलती-जुलती हैं
सोच रहा हूँ
तुम से पूछूँ
कौन है वो
तुम या और कोई
- abdul-mannan-samadi
तुम्हें देखा नहीं है
एक मुद्दत से
मगर मैं पूछता हूँ
अपने दिल से
छलक उठती हैं क्यों आँखें
तुम्हारी याद आते ही
- abdul-mannan-samadi
रुख़्सत हुआ कि जिस ने सदा
हमारे दिल में खिलाए थे चाहतों के गुलाब
ख़ुमार बाक़ी है अब तक हमारी आँखों में
हसीन लम्हों का जो उस के दम से रौशन थे
तुम्हारे बा'द भी आएँगे यूँ तो सब मौसम
बहुत सताएँगे लेकिन हर एक मौक़ा पर
जो होते तुम तो
ये काम इस तरह करते
करेंगे याद तुम्हें हम कई हवालों से
अजीब शख़्स था
कड़वी-कसीली सुन कर भी
न तेज़ बोला किसी से
न वो हुआ नाराज़
सजाए रहता था होंटों पे चाहतों के गुलाब
बिछड़ रहे हो तो वा'दा करो मिरे हमदम
कभी जो गुज़रो इधर से तो भूल मत जाना
यहीं मिलेंगे किसी मूलसरी के पेड़ तले
करेंगे बातें श्रंगार-रस के दोहों की
करेंगे बातें बिहारी की नायकाओं की
करेंगे बातें किसी के रसीले होंटों की
महकती ज़ुल्फ़ों की काजल की उस की बिंदिया की
लचकती शाख़ से जिस्मों की
चाँद-चेहरों की
बिछड़ रहे हो तो वा'दा करो
कि आओगे
कभी जो गुज़रो इधर से तो भूल मत जाना
तुम्हारे हिज्र के मौसम की सब्ज़ चादर को
मैं अपने तन पे सजाए
यहीं मिलूँगा तुम्हें
- farooq-bakshi
ज़िंदगी तेरी ज़िया
रौशनी या साएबाँ
आसमानों सी रिदा
ज़िंदगी इक शोर है
ख़ामुशी भी इक सदा
बंदगी भी तिश्नगी
किस क़दर दिलकश अदा
ये जहाँ तस्ख़ीर कर ले
वो जहाँ है मावरा
- ahmar-sahaab
सदाक़त से अपने वतन को सजाओ
तुम्हारे लिए ने'मतें हैं जहाँ की
चलो साथ मिल के नसीब आज़माओ
ख़ुदी भी तुम्हारी ख़ुदा भी तुम्हारा
ख़ुदा के लिए जान पर खेल जाओ
तुम्हें रहमतों का सहारा मिलेगा
मोहब्बत से मेहनत का जादू जगाओ
फिर आवाज़ इफ़्लास की आ रही है
बढ़ो अपनी धरती पे सोना उगाओ
ख़यालात को एक मरकज़ पे लाओ
उठो नौजवानो वतन को बचाओ
ये अम्न-ओ-अमाँ के तलबगार बंदे
ये मज़दूर बंदे ये जी-दार बंदे
ये साबिर ये शाकिर ये ज़ाकिर ये ज़ाहिद
ये दीन-ए-इलाही के मे'मार बंदे
अभी रो रहे थे अभी हँस रहे हैं
ये मजबूर बंदे ये मुख़्तार बंदे
निगाहों में अपने समाए हुए हैं
फ़रेब-ए-नज़र में गिरफ़्तार बंदे
गुलिस्ताँ में हैं जो गुलों के मुहाफ़िज़
उन्हें आज उन की हक़ीक़त बताओ
गए वक़्त का आईना भी दिखाओ
उठो नौजवानो वतन को बचाओ
मोहब्बत में नफ़रत से बच कर चलेंगे
कुदूरत मिटेगी तो साग़र चलेंगे
ज़बरदस्त हैं ज़ेर-दस्तों पे हावी
कि तेग़ों के साए में ख़ंजर चलेंगे
मोहब्बत को भी हर्फ़-ए-आख़िर न समझो
मोहब्बत से आगे भी सोज़-ए-सुख़न है
जहन्नुम के शो'ले भड़कने से पहले
सदा आ रही है कि तन को बचाओ
ख़राबे से सेहन-ए-चमन को बचाओ
उठो नौजवानो वतन को बचाओ
इधर इंक़िलाबी तक़द्दुस बढ़ेगा
उधर चाँद तारों के चक्कर चलेंगे
उजाले में हर खेल खेलो ख़ुशी से
अंधेरे से पहले मगर चल चलेंगे
दर-ए-मय-कदा बंद होने न देना
अगर तोड़ सकते नहीं टूट जाओ
फिर अपने ख़ुदा को सहारा बनाओ
उठो नौजवानो वतन को बचाओ
यही पाक धरती हमारा वतन है
इसी की तरक़्क़ी हमारी लगन है
जियाले जवानों की दानिशवरों की
यही अंजुमन है यही अंजुमन है
शुजा'अत के क़िस्से कहाँ तक सुनाऊँ
जवानी की ख़ुशबू चमन-दर-चमन है
- abul-fitrat-meer-zaidi
हर एक बा-वफ़ा मिला
जिसे था पास-ए-दोस्ती
वही उठा बढ़ा मिला
नशिस्त जिस की दूर थी
क़रीब आ गया मिला
पेशावर आने का मुझे
सही जो लुत्फ़ था मिला
हँसी मिली ख़ुशी मिली
ख़ुदी मिली ख़ुदा मिला
रक़ीब था खिचा खिचा
हबीब था घुला मिला
नज़र नज़र अदा अदा
मैं देखता चला गया
गुलों में ज़िंदगी मिली
चमन में दिलकशी मिली
ख़ुशी गले लगी मिली
मिली हँसी ख़ुशी मिली
चमन चमन रविश रविश
बहार हुस्न की मिली
कहीं बनावटें मिलीं
कहीं पे सादगी मिली
कहीं पे ज़ुल्मतें मिलीं
कहीं पे रौशनी मिली
नज़र किसी निगाह से
कभी हटी कभी मिली
न था कोई जो टोकता
मैं देखता चला गया
हर एक सम्त ख़ान हैं
शकील हैं जवान हैं
न नून हैं न नान हैं
ये सब के सब पठान हैं
जिहाद इन की शान है
जिहाद की ये शान हैं
ये ग़ाज़ियों के हैं पिसर
मुजाहिदों की जान हैं
ये सब ख़ुदा-परस्त हैं
ख़ुदी के तर्जुमान हैं
बड़ी बड़ी हवेलियाँ
बड़े बड़े निशान हैं
नज़ारा-हा-ए-दिलरुबा
मैं देखता चला गया
'अजीब चीज़ है यहाँ
हसीन रात का समाँ
निगाह जिस तरफ़ करो
चमक रही हैं बिजलियाँ
हसीन लोग चार-सू
सड़क पे हैं रवाँ-दवाँ
'इमारतों के सामने
झुका हुआ है आसमाँ
कि देखने की चीज़ हैं
इधर उधर यहाँ वहाँ
सेकेटरियों की मोटरें
कमिश्नरों की कोठियाँ
बहार थी निखार था
मैं देखता चला गया
ये ख़ुश-लिबास लड़कियाँ
हसीं हसीं जवाँ जवाँ
हुसूल-ए-‘इल्म के लिए
क़दम क़दम रवाँ-दवाँ
ख़ुशी से दिल महक उठे
नज़र पड़ी जहाँ-जहाँ
खुली हुई किताब में
शराफ़तों की दास्ताँ
हक़ीक़तें सिमट गईं
ठहर के दम लिया जहाँ
शराब की मिसाल हैं
शबाब की ये सुर्ख़ियाँ
ये इंक़लाब की अदा
मैं देखता चला गया
हकीम भी हैं पीर भी
अमीर भी कबीर भी
असेंबली में जल्वा-गर
बड़े बड़े वज़ीर भी
कि जिन के वोटरों में हैं
अक़ील भी कसीर भी
उन्हीं के दम से आज है
ये शह्र-ए-बे-नज़ीर भी
हमारे लीडरों में हैं
शहीर भी बसीर भी
मुक़ीम इस मक़ाम पर
हैं एक दो सफ़ीर भी
यूँही बस इत्तिफ़ाक़ था
मैं देखता चला गया
ग़रीब लोग बा-वफ़ा
अमीन-ए-ग़ैरत-ओ-हया
धनी हैं अपनी बात के
नहीं है ख़ौफ़ जान का
मसर्रतों की बात कर
मुसीबतों का ज़िक्र क्या
कभी जो वक़्त आ पड़ा
बुरा भला गुज़र गया
दही क़दीम बात है
न कुछ घटा न कुछ बढ़ा
कि शुक्र जिन की शान है
शिकायतों से उन को क्या
फटा हुआ लिबास था
मैं देखता चला गया
ये शा'इरों की बज़्म है
कि 'अर्सा-गाह-ए-रज़्म है
तरह तरह की बोलियाँ
अलग अलग हैं टोलियाँ
सुख़न में कोई फ़र्द है
किसी का रंग ज़र्द है
हैं इन में शहसवार भी
बुज़ुर्ग-ए-बा-वक़ार भी
सभी में ये कमाल है
हर इक जगह ये हाल है
मरीज़ हो कि हो मरज़
मुझे किसी से क्या ग़रज़
मुशा’एरा ज़रूर था
मैं देखता चला गया
- abul-fitrat-meer-zaidi
मोहब्बत दीन-ए-फ़ितरत की ज़बाँ है
मोहब्बत जज़्बा-ए-सिद्क़-ओ-यक़ीं है
मोहब्बत ही मोहब्बत की अमीं है
मोहब्बत तालिब-ए-हुस्न-ओ-जवानी
मोहब्बत फूल काँटों की कहानी
मोहब्बत शाहिद-ए-वहदानियत है
मोहब्बत जज़्बा-ए-इंसानियत है
मोहब्बत हर्फ़-ए-शीरीं की अमानत
मोहब्बत जज़्बा-ए-दिल की सदाक़त
मोहब्बत जिस्म भी है जान भी है
मोहब्बत फ़ितरत-ए-इंसान भी है
कहा जिस को फ़रिश्तों ने 'इबादत
मोहब्बत है मोहब्बत है मोहब्बत
मोहब्बत दुश्मन-ए-रहबानियत है
मोहब्बत कलमा-ए-इंसानियत है
मोहब्बत रहनुमा-ए-आदमी है
मोहब्बत सोज़-ओ-साज़-ए-ज़िंदगी है
मोहब्बत 'इश्क़ का तूफ़ान भी है
मोहब्बत हुस्न का ईमान भी है
मोहब्बत फ़ल्सफ़ा है दोस्ती का
मोहब्बत में सबक़ है ज़िंदगी का
मोहब्बत फ़ातेह-ओ-मफ़्तूह भी है
मोहब्बत हामिद-ओ-ममदूह भी है
मोहब्बत है यक़ीन-ए-कामरानी
मोहब्बत दार की भी है कहानी
मोहब्बत दीन-ओ-दुनिया की तलब है
मोहब्बत फ़िक्र है 'इल्म-ओ-अदब है
मोहब्बत तर्ज़ भी अंदाज़ भी है
मोहब्बत साज़ भी आवाज़ भी है
मोहब्बत जाँ-निसारों की ख़ुशी है
मोहब्बत हुस्न की ज़िंदा-दिली है
मोहब्बत का नहीं है एक पहलू
मोहब्बत पर न पाया दिल ने क़ाबू
मोहब्बत नग़्मा-ए-रोज़-ए-अज़ल है
मोहब्बत क़ाज़ी-ए-शहर-ए-'अमल है
मोहब्बत दर्द है दीवानगी है
मोहब्बत फ़र्ज़ है मर्दांगी है
मोहब्बत इम्तिहान-ए-ज़िंदगी है
मोहब्बत देवता की मूर्ती है
मोहब्बत रहमतों की दास्ताँ है
मोहब्बत मर्द-ए-मोमिन की अज़ाँ है
मोहब्बत रौनक़-ए-दुनिया-ओ-दीं है
मोहब्बत चाँद सूरज की ज़मीं है
मोहब्बत गुल भी है और गुलसिताँ भी
मोहब्बत ख़ारज़ारों की ज़बाँ भी
मोहब्बत दा'वत-ए-रंज-ओ-अलम भी
मोहब्बत है नवेद-ए-फ़िक्र-ओ-ग़म भी
मोहब्बत वलवलों की इंतिहा भी
बुढ़ापे में जवानी की सदा भी
मोहब्बत ही ख़ुशी का रास्ता है
मोहब्बत ही में दुनिया का भला है
मोहब्बत क़िस्सा-ए-जाम-ओ-सुबू है
मोहब्बत ज़िंदगी की जुस्तुजू है
मोहब्बत आदम-ओ-हव्वा ने की है
मोहब्बत रूह की पाकीज़गी है
मोहब्बत चैन है सब्र-ओ-सुकूँ है
मोहब्बत राहत-ए-अहल-ए-जुनूँ है
मोहब्बत से है रौनक़ महफ़िलों की
मोहब्बत कब ख़ता है थुड़-दिलों की
मोहब्बत हर सलीक़े का निशाँ है
मोहब्बत हर नफ़स की दास्ताँ है
मोहब्बत मा'नी-ए-हुस्न-ए-सुख़न है
मोहब्बत अल्लह वालों का चलन है
मोहब्बत साहब-ए-'इल्म-उल-यक़ीं भी
मोहब्बत रूह भी रूह-उल-अमीं भी
मोहब्बत 'इश्क़ है ज़र्ब-ए-ख़ुदी है
मोहब्बत ज़ुल्फ़िक़ार-ए-हैदरी है
मोहब्बत भेद खोले आरज़ू के
मोहब्बत ज़िंदगी के ग़म समेटे
मोहब्बत नफ़सियाती उलझनों से
वरक़ उल्टे सदाक़त के जुनूँ के
मोहब्बत है 'इलाज-ए-ज़ब्त-ए-इंसाँ
मोहब्बत इम्तिहान-ए-ज़ब्त-ए-इंसाँ
मोहब्बत की अलग सब से है बोली
मोहब्बत की गिरह फ़ितरत ने खोली
मोहब्बत साहिब-ए-फ़िक्र-ओ-नज़र है
मोहब्बत में रक़ाबत का भी डर है
मोहब्बत दो-जहाँ में सुर्ख़-रू भी
मोहब्बत गुल मोहब्बत रंग-ओ-बू भी
मोहब्बत माहताबों से बनी है
मोहब्बत इंक़िलाबों से बनी है
मोहब्बत का नशा है सब से बेहतर
मोहब्बत पारा-ए-तसनीम-ओ-कौसर
मोहब्बत शो'ला है शो'ला-नुमा है
मोहब्बत ही हक़ीक़त में ख़ुदा है
- abul-fitrat-meer-zaidi
सहरा में गुलज़ार को देखा
मजबूरों के पेट को देखा
क़ाइद-ए-आज़म गेट को देखा
क्या समझे क्या जाने देखा
सब को सीना ताने देखा
शलवारों से 'आरी देखा
तह-बंदों को जारी देखा
कलियों को शरमाते देखा
खुल कर ढोला गाते देखा
होटल वाले 'अर्श पे देखे
होटल सारे फ़र्श पे देखे
गाहक और ब्योपारी देखे
दुबले देखे भारी देखे
साफ़ और फैले फैले देखे
कपड़े मैले मैले देखे
लड़के छैल-छबीले देखे
हर-सू रेत के टीले देखे
टूटे फूटे नाले देखे
मुख़्लिस ताँगे वाले देखे
बस्ती रसती बस्ती देखी
मुल्कों की भी हस्ती देखी
गली गली दिल-अफ़ज़ा देखी
थल वालों की दुनिया देखी
मज़दूरों की महफ़िल देखी
दूर से कपड़े की मिल देखी
बेगम देखी बांदी देखी
धन वालों की चाँदी देखी
दौलत 'इज़्ज़त वाली देखी
जेब ग़रीब की ख़ाली देखी
रहम के तालिब बंदे देखे
ज़रदारों के फंदे देखे
'इल्म-ओ-अदब के पाले देखे
शोहरत के मतवाले देखे
शा'इर शे'र सुनाते देखे
सामे' सर्दी खाते देखे
दिल बढ़ते दिल घटते देखे
मुर्ग़ बटेरे बटते देखे
हाल में दोंगड़ा पड़ते देखे
भूके शेर को लड़ते देखे
इक तस्वीर निराली देखी
दाने भूनने वाली देखी
शो'ला देखा शबनम देखी
फूलों में ख़ुशबू कम देखी
दुनिया आँखें मलते देखी
वक़्त की चक्की चलते देखी
नासूरों को रिसते देखा
इंसानों को पिसते देखा
कुछ शतरंज की बाज़ी देखी
कुछ मेहमान-नवाज़ी देखी
एक तरफ़ इंसान को देखा
शैख़ को देखा ख़ान को देखा
प्यारों के अंदाज़ को देखा
सूफ़ी जी के नाज़ को देखा
एक अदा-ए-ख़ास को देखा
लोगों के इख़्लास को देखा
शेर अफ़ज़ल की शान को देखा
मोमिन के ईमान को देखा
'अदम' ने छुप कर साक़ी देखा
हम ने सब कुछ बाक़ी देखा
- abul-fitrat-meer-zaidi
(रूमी)
फिर इक दिन ऐसा आएगा
आँखों के दिए बुझ जाएँगे
हाथों के कँवल कुम्हलाएँगे
और बर्ग-ए-ज़बाँ से नुत्क़ ओ सदा
की हर तितली उड़ जाएगी
इक काले समुंदर की तह में
कलियों की तरह से खिलती हुई
फूलों की तरह से हँसती हुई
सारी शक्लें खो जाएँगी
ख़ूँ की गर्दिश दिल की धड़कन
सब रागनियाँ सो जाएँगी
और नीली फ़ज़ा की मख़मल पर
हँसती हुई हीरे की ये कनी
ये मेरी जन्नत मेरी ज़मीं
इस की सुब्हें इस की शामें
बे-जाने हुए बे-समझे हुए
इक मुश्त-ए-ग़ुबार-ए-इंसाँ पर
शबनम की तरह रो जाएँगी
हर चीज़ भुला दी जाएगी
यादों के हसीं बुत-ख़ाने से
हर चीज़ उठा दी जाएगी
फिर कोई नहीं ये पूछेगा
'सरदार' कहाँ है महफ़िल में
लेकिन मैं यहाँ फिर आऊँगा
बच्चों के दहन से बोलूँगा
चिड़ियों की ज़बाँ से गाऊँगा
जब बीज हँसेंगे धरती में
और कोंपलें अपनी उँगली से
मिट्टी की तहों को छेड़ेंगी
मैं पत्ती पत्ती कली कली
अपनी आँखें फिर खोलूँगा
सरसब्ज़ हथेली पर ले कर
शबनम के क़तरे तौलूँगा
मैं रंग-ए-हिना आहंग-ए-ग़ज़ल
अंदाज़-ए-सुख़न बन जाऊँगा
रुख़्सार-ए-उरूस-ए-नौ की तरह
हर आँचल से छन जाऊँगा
जाड़ों की हवाएँ दामन में
जब फ़स्ल-ए-ख़िज़ाँ को लाएँगी
रह-रौ के जवाँ क़दमों के तले
सूखे हुए पत्तों से मेरे
हँसने की सदाएँ आएँगी
धरती की सुनहरी सब नदियाँ
आकाश की नीली सब झीलें
हस्ती से मिरी भर जाएँगी
और सारा ज़माना देखेगा
हर क़िस्सा मिरा अफ़्साना है
हर आशिक़ है 'सरदार' यहाँ
हर माशूक़ा 'सुल्ताना' है
मैं एक गुरेज़ाँ लम्हा हूँ
अय्याम के अफ़्सूँ-ख़ाने में
मैं एक तड़पता क़तरा हूँ
मसरूफ़-ए-सफ़र जो रहता है
माज़ी की सुराही के दिल से
मुस्तक़बिल के पैमाने में
मैं सोता हूँ और जागता हूँ
और जाग के फिर सो जाता हूँ
सदियों का पुराना खेल हूँ मैं
मैं मर के अमर हो जाता हूँ
- richard-j.-cohen
पीने आए ठंडी कॉफ़ी
इक दो पैकेट बिस्कुट खाए
ठूँस गए दो दर्जन टॉफ़ी
आलू छोले खा कर बोले
बर्फ़ी एक किलो है काफ़ी
अम्मी जी की बात न मानी
अब्बू से की वा'दा-ख़िलाफ़ी
पेट हुआ आपे से बाहर
सहमा कर सब ना-इंसाफ़ी
ऐसा खटका पेट का मटका
अल्लह मु'आफ़ी अल्लह मु'आफ़ी
- ahmad-hatib-siddiqi
और अम्मी ने समझाई नहीं
में कैसे मीठी बात करूँ
जब मैं ने मिठाई खाई नहीं
आपी भी पकाती हैं हलवा
फिर वो भी क्यूँ हलवाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं
नानी के मियाँ तो नाना हैं
दादी के मियाँ भी दादा हैं
जब आपा से मैं ने ये पूछा
बाजी के मियाँ क्या बाजा हैं
वो हँस हँस कर ये कहने लगीं
ऐ भाई नहीं ऐ भाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं
जब नया महीना आता है तो
बिजली का बिल आ जाता है
हालाँकि बादल बेचारा
ये बिजली मुफ़्त बनाता है
फिर हम ने अपने घर बिजली
बादल से क्यूँ लगवाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं
गर बिल्ली शेर की ख़ाला है
तो हम ने उसे क्यूँ पाला है
क्या शेर बहुत नालायक़ है
ख़ाला को मार निकाला है
या जंगल के राजा के यहाँ
क्या मिलती दूध मलाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं
क्यूँ लम्बे बाल हैं भालू के
क्यूँ उस की टुंड कराई नहीं
क्या वो भी गंदा बच्चा है
या उस के अब्बू भाई नहीं
ये उस का हेयर स्टाइल है
या जंगल में कोई नाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं
जो तारे झिलमिल करते हैं
क्या उन की चच्ची ताई नहीं
होगा कोई रिश्ता सूरज से
ये बात हमें बतलाई नहीं
ये चंदा कैसा मामा है
जब अम्मी का वो भाई नहीं
ये बात समझ में आई नहीं
- ahmad-hatib-siddiqi
दूध पिएँ न अंडे खाएँ
फल तरकारी एक न भाए
ग़ुस्से में बस होंट चबाएँ
देख के दस्तरख़्वान पे मछली
पाँव पटख़ते भागे जाएँ
चावल रोटी गोश्त की बोटी
देखें तो नख़रे दिखलाएँ
दिन का हो या रात का खाना
रोएँ पीटें शोर मचाएँ
दुबले पतले रूखे सूखे
बात करो तो लड़ने आएँ
इतने हल्के फुल्के से हैं
फ़ैन चले तो उड़ ही जाएँ
- ahmad-hatib-siddiqi
चूज़ा उठ कर पढ़ता है
चूँ-चूँ चूँ-चूँ
चूँ-चूँ चूँ-चूँ
पहले बिस्मिल्लाह कहूँ
फिर मैं अपना सबक़ पढ़ूँ
सुब्ह सवेरे उठते ही
अपने रब को याद करूँ
खाने पीने से पहले
चोंच रगड़ कर साफ़ करूँ
इतना तो है याद मुझे
अम्मी आगे क्या सीखूँ
मुर्ग़ी कट कट करती है
ख़ुश हो कर यूँ कहती है
मेरा चू चू शाद रहे
शाद रहे आबाद रहे
पढ़ने ही से 'इज़्ज़त है
बात ये बेटा याद रहे
जाहिल लोग ज़माने में
ख़्वार हुए बर्बाद रहे
सीखें और सिखाएँ जो
बन कर वो उस्ताद रहे
बस तू भी मेहनत से पढ़
सब लोगों से आगे बढ़
- ahmad-hatib-siddiqi
कितनी पथराई हुई आँखों में ग़ल्तीदा है
जाने किस दौर-ए-अलम-नाक से ले कर अब तक
तू कड़े वक़्त के ज़िंदानों में ख़्वाबीदा है
तेरे सब रंग हयूले के ये बे-जान नुक़ूश
जैसे मरबूत ख़यालात के ताने-बाने
ये तिरी साँवली रंगत ये परेशान ख़ुतूत
बारहा जैसे मिटाया हो इन्हें दुनिया ने
रेशा-ए-संग से खींची हुई ज़ुल्फ़ें जैसे
रास्ते सीना-ए-कोहसार पे बल खाते हैं
अब्रूओं की झुकी मेहराबों में जामिद पलकें
जिस तरह तीर कमानों में उलझ जाते हैं
मुंजमिद होंटों पे सन्नाटों का संगीन तिलिस्म
जैसे नायाब ख़ज़ानों पे कड़े पहरे हों
तुंद जज़्बात से भरपूर बरहना सीना
जैसे सुस्ताने को तूफ़ान ज़रा ठहरे हों
जैसे यूनान के मग़रूर ख़ुदावंदों ने
रेगज़ारान-ए-हब्श की किसी शहज़ादी को
तिश्ना रूहों के हवसनाक तअ'य्युश के लिए
हजला-ए-संग में पाबंद बना रख्खा हो
- ahmad-faraz
टुकड़े बादल के तख़्ते फूलों के
कार-ख़ानों में आते-जाते लोग
चिमनियों से निकलता भूरा धुआँ
गर्ल्स इस्कूल की इमारत के
पास ही एक चौड़ी सी सड़क
खेलते जिस पे अनगिनत बच्चे
रौशनी वापस आते ही फ़ौरन
बंद कमरे में लटके पर्दे पर
सब के सब जैसे मुस्कुराने लगे
- aftab-shamsi
''दयार-ए-इश्क़ में अपना मक़ाम पैदा कर''
सबक़ ये सीख अली की ख़मोशियों से ज़रा
''सुकूत-ए-लाला-ओ-गुल से कलाम पैदा कर''
अली वो है जो ग़रीबी में भी अमीर रहा
''ख़ुदी न बेच ग़रीबी में नाम पैदा कर''
मोहब्बतों के बहुत जाम तू ने बख़्शे हैं
फ़रोग़-ए-इश्क़-ए-अली का भी जाम पैदा कर
तू शहर-ए-इल्म के दर का फ़क़ीर है तो 'अदील'
''नया ज़माना नए सुब्ह-ओ-शाम पैदा कर''
- adeel-zaidi
नस्ल-ए-आदम का ख़ून है आख़िर
जंग मशरिक़ में हो कि मग़रिब में
अम्न-ए-आलम का ख़ून है आख़िर
बम घरों पर गिरें कि सरहद पर
रूह-ए-ता'मीर ज़ख़्म खाती है
खेत अपने जलें कि औरों के
ज़ीस्त फ़ाक़ों से तिलमिलाती है
टैंक आगे बढ़ें कि पिछे हटें
कोख धरती की बाँझ होती है
फ़त्ह का जश्न हो कि हार का सोग
ज़िंदगी मय्यतों पे रोती है
जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
आग और ख़ून आज बख़्शेगी
भूक और एहतियाज कल देगी
इस लिए ऐ शरीफ़ इंसानो
जंग टलती रहे तो बेहतर है
आप और हम सभी के आँगन में
शम' जलती रहे तो बेहतर है
2
बरतरी के सुबूत की ख़ातिर
ख़ूँ बहाना ही क्या ज़रूरी है
घर की तारीकियाँ मिटाने को
घर जलाना ही क्या ज़रूरी है
जंग के और भी तो मैदाँ हैं
सिर्फ़ मैदान-ए-किश्त-ओ-ख़ूँ ही नहीं
हासिल-ए-ज़िंदगी ख़िरद भी है
हासिल-ए-ज़िंदगी जुनूँ ही नहीं
आओ इस तीरा-बख़्त दुनिया में
फ़िक्र की रौशनी को 'आम करें
अम्न को जिन से तक़्वियत पहुँचे
ऐसी जंगों का एहतिमाम करें
जंग वहशत से बरबरिय्यत से
अम्न तहज़ीब ओ इर्तिक़ा के लिए
जंग मर्ग-आफ़रीं सियासत से
अम्न इंसान की बक़ा के लिए
जंग इफ़्लास और ग़ुलामी से
अम्न बेहतर निज़ाम की ख़ातिर
जंग भटकी हुई क़यादत से
अम्न बे-बस अवाम की ख़ातिर
जंग सरमाए के तसल्लुत से
अम्न जम्हूर की ख़ुशी के लिए
जंग जंगों के फ़लसफ़े के ख़िलाफ़
अम्न पुर-अम्न ज़िंदगी के लिए
- sahir-ludhianvi