कीता शायरी

टुकड़ों में भावनाओं का खुलासा

कीता शायरी की दुनिया में एक कवितात्मक खोज में निकलें, एक कवितात्मक रूप जो भावनाओं और कहानियों को संक्षेप्ता में समाहित करता है। कीता शायरी में पाए जाने वाले सौंदर्य और गहराई की खोज करें जब प्रत्येक टुकड़ा जटिल कहानियां खोलता है और गहरी भावनाएं प्रकट करता है।

दफ़्न हैं साग़रों में हंगामे
कितनी उजड़ी हुई बहारों के
नाम कुंदा हैं आबगीनों पर
कितने डूबे हुए सितारों के


- abdul-hamid-adam


ये तिरी तख़्लीक़-ए-ना-फ़र्जाम ये टेढ़ी ज़मीन
हश्र तक टेढ़ी रहेगी इस में तू मा'ज़ूर है
आ कि सीने से लगाएँ ख़ालिक़-ए-बर-हक़ तुझे
जितने हम मजबूर हैं उतना ही तू मजबूर है


- akhtar-ansari-akbarabadi


मैं ने जब उस से कहा तुम से मोहब्बत है मुझे
उस ने शरमाते हुए मुझ को जवाब इस का दिया
आह लेकिन दिल-ए-नाशाद ये ग़ारत हो जाए
इस क़दर ज़ोर से धड़का कि मैं कुछ सुन न सका


- akhtar-ansari-akbarabadi


जो पूछता है कोई सुर्ख़ क्यों हैं आज आँखें
तो आँखें मल के ये कहता हूँ रात सो न सका
हज़ार चाहूँ मगर ये न कह सकूँगा कभी
कि रात रोने की ख़्वाहिश थी और रो न सका


- akhtar-ansari-akbarabadi


इन आँसुओं को टपकने दिया न था मैं ने
कि ख़ाक में न मिलें मेरी आँख के तारे
मैं इन को ज़ब्त न करता अगर ख़बर होती
पहुँच के क़ल्ब में बन जाएँगे ये अंगारे


- akhtar-ansari-akbarabadi


आरज़ूएँ न रहीं हसरत-ओ-अरमाँ न रहे
या'नी पहलू से मिरे वो दिल-ए-दीवाना गया
छुट गए और सब अंदाज़-ए-जुनूँ तो लेकिन
दूसरे तीसरे दिन का मिरा रोना न गया


- akhtar-ansari-akbarabadi


त'अज्जुब से कहने लगे बाबू साहब
गवर्नमेंट सय्यद पे क्यों मेहरबाँ है
उसे क्यों हुई इस क़दर कामयाबी
कि हर बज़्म में बस यही दास्ताँ है


कभी लाट साहब हैं मेहमान उस के
कभी लाट साहब का वो मेहमाँ है
नहीं है हमारे बराबर वो हरगिज़
दिया हम ने हर सीग़े का इम्तिहाँ है


वो अंग्रेज़ी से कुछ भी वाक़िफ़ नहीं है
यहाँ जितनी इंग्लिश है सब बर-ज़बाँ है
कहा हँस के अकबर ने ऐ बाबू साहब
सुनो मुझ से जो रम्ज़ इस में निहाँ है


नहीं है तुम्हें कुछ भी सय्यद से निस्बत
तुम अंग्रेज़ी-दाँ हो वो अंग्रेज़-दाँ है

- akbar-allahabadi


शोख़ी ये लीडरों की ये मिल्लत की अबतरी
तारीक शब में कश्मकश-ए-बर्क़-ओ-अब्र है
महफ़ूज़ मिस्ल-ए-अंजुम-ए-ताबाँ हैं वो बुज़ुर्ग
ज़ौक़-ए-सलात जिन को है और ताब-ए-सब्र है


- akbar-allahabadi


ख़िज़ाँ से जंग करूँ ये नहीं मुझे सौदा
मलूल मैं भी हूँ लेकिन है इंतिज़ार-ए-बहार
नफ़ीस तुख़्म बना रक्खो अपने ‘अज़मों को
और उस के बा'द रहो तुम उमीद-वार-ए-बहार


- akbar-allahabadi


इक तरफ़ तमकीन है और बे-क़रारी इक तरफ़
इंतिज़ाम-ए-तब'-ए-इंसाँ है ख़ुदा के हाथ में
है वही दीवार में मिट्टी बगूले में जो है
नींव के पंजे में वो है ये हवा के हाथ में


- akbar-allahabadi


बे-पर्दा कल जो आईं नज़र चंद बीबियाँ
'अकबर' ज़मीं में ग़ैरत-ए-क़ौमी से गड़ गया
पूछा जो मैं ने आप का पर्दा वो क्या हुआ
कहने लगीं कि अक़्ल पे मर्दों के पड़ गया


- akbar-allahabadi


अब न छूटेगा कभी सात जनम का बंधन
अपने दूल्हा से बड़े प्यार से बोली दुल्हन
लाज रखना मिरे सिंदूर की मरते दम तक
मिरे भय्या मिरे चंदा मिरे अनमोल रतन


- ahmad-alvi


तुम्हारे पास पहुँच जाएँगे घड़ी-भर में
गुमाँ ये कैसा शिकस्ता परों पे होता है
तुम्हारे सह्न में जब चाँदनी उतरती है
हमारे शहर में सूरज सरों पे होता है


- dr.-yasin-aatir


मैं एक मुद्दत से सोचता हूँ
कि अपनी बे-नाम वहशतों का
नफ़स नफ़स तेरे नाम लिक्खूँ
या तुझ को बस इक सलाम लिक्खूँ


- dr.-yasin-aatir


वक़्त के साथ साथ इंसाँ का
इक 'अजब रंग होता जाता है
हिम्मतें साथ छोड़ देती हैं
दायरा तंग होता जाता है


- dr.-yasin-aatir


वो जिन में तेरी ख़ुशबू बस गई थी
उन्ही कपड़ों को फिर से धो रहा हूँ
वही छतरी है अब भी बारिशों में
वही कम्बल है जिस में सो रहा हूँ


- dr.-yasin-aatir


क़रीब आ कि मोहब्बत का एहतिमाम करें
ज़माना बीत गया दिल पे चोट खाए हुए
मुझे भी एक नए ज़ख़्म की ज़रूरत है
तुझे भी हो गई मुद्दत मुझे सताए हुए


- dr.-yasin-aatir


मेरा बच्चा देख रहा था इक लड़की को मुड़-मुड़ के
मैं ने पूछा किस शय ने तुम को हैरत में डाला है
बच्चा हैरानी से बोला समझ नहीं आती मुझ को
गोरे मुखड़े वाली के हाथों का रंग क्यों काला है


- badr-muneer


हो जाता है मिनटों में पसीने से शराबोर
चलता है उन्हें जब भी उठा कर वो पियादा
ये ज़ुल्म नहीं है तो बता दीजिए क्या है
बच्चे का है कम वज़्न किताबों का ज़ियादा


- badr-muneer


इलेक्शन की मुहिम हो तो दुपट्टा सर पे आ जाए
गिरफ़्तारी अगर हो हाथ में तस्बीह रखती है
‘अवामुन्नास के जज़्बात से है खेलना कैसे
एजेंडे में फ़क़त ये एक ही तरजीह रखती है


- badr-muneer


इतनी सुंदर इतनी सुघड़ इतनी ज़ियादा नेक
रश्क मुझे ख़ुद पर आता है करता हूँ जब ग़ौर
बेगम तेरी इस से ज़ियादा क्या तारीफ़ करूँ
काश तुम्हारे जैसी मुझ को मिल जाती इक और


- badr-muneer


किताब अपनी बराए-तब्सिरा देते हुए बोली
बहुत लम्बी न हो छोटी सी इक तहरीर बेहतर है
पढ़ी जब शा'इरी बे-साख़्ता मुँह से यही निकला
तकल्लुफ़-बर-तरफ़ अश'आर से तस्वीर बेहतर है


- badr-muneer


वो जिन की पीरी-फ़क़ीरी का है जहाँ क़ाइल
वो जिन के दम से कहीं रंज-ओ-ग़म नहीं टिकते
ख़ुद अपने पेट में हल्का सा दर्द उठ्ठे तो
‘इलाज के लिए लंदन से कम नहीं टिकते


- badr-muneer


शादी से पहले तो वेट कराती है
बा'द में फिर दफ़्तर से लेट कराती है
शौहर वो सिम है जिस को उस की बेगम
जैसे चाहे एक्टिवटे कराती है


- badr-muneer


अपलोड फेसबुक पे उन्हें उस ने कर दिया
मैं ने किया कॉमेंट कि प्यारी हैं सेल्फ़ियाँ
इक दोस्त मुझ से कहने लगा कुछ तो शर्म कर
बकरे के साथ उस ने उतारी हैं सेल्फ़ियाँ


- badr-muneer