एक सितम और लाख अदाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने तिरछी निगाहें तंग क़बाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने हिज्र में अपना और है आलम अब्र-ए-बहाराँ दीदा-ए-पुर-नम ज़िद कि हमें वो आप बुलाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने अपनी अदा से आप झिजकना अपनी हवा से आप खटकना चाल में लग़्ज़िश मुँह पे हयाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने हाथ में आड़ी तेग़ पकड़ना ताकि लगे भी ज़ख़्म तो ओछा क़स्द कि फिर जी भर के सताएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने काली घटाएँ बाग़ में झूले धानी दुपट्टे लट झटकाए मुझ पे ये क़दग़न आप न आएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने पिछले पहर उठ उठ के नमाज़ें नाक रगड़नी सज्दों पे सज्दे जो नहीं जाएज़ उस की दुआएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने 'शाद' न वो दीदार-परस्ती और न वो बे-नश्शा की मस्ती तुझ को कहाँ से ढूँढ के लाएँ उफ़ री जवानी हाए ज़माने