जिस कूँ पी का ख़याल होता है ऊस कूँ जीना मुहाल होता है ख़म-ए-अबरू की याद सीं दिल पर ज़ख़्म-ए-नाखुन हिलाल होता है चल चमन तेरे फ़ैज़-ए-क़द से सर्व हर क़दम में निहाल होता है जब मैं रोता हूँ खोल कर दिल कूँ शहर में बर्शगाल होता है कौन जाने है ग़ैर-ए-हक़ तुझ बिन जो कि 'हातिम' का हाल होता है