कुछ फ़ासला नहीं है अदू और शिकस्त में लेकिन कोई सुराग़ नहीं है गिरफ़्त में कुछ दख़्ल इख़्तियार को हो बूद-ओ-हस्त में सर कर लूँ ये जहान-ए-आलम एक जस्त में अब वादी-ए-बदन में कोई बोलता नहीं सुनता हूँ आप अपनी सदा बाज़-गश्त में रुख़ है मिरे सफ़र का अलग तेरी सम्त और इक सू-ए-मुर्ग़-ज़ार चले एक दश्त में किस शाह का गुज़र है कि मफ़्लूज जिस्म-ओ-जाँ जी जान से जुटे हुए हैं बंद-ओ-बस्त में ये पूछ आ के कौन नसीबों जिया है दिल मत देख ये कि कौन सितारा है बख़्त में किस सोज़ की कसक है निगाहों के आस पास किस ख़्वाब की शिकस्त उमड आई है तश्त में