मोहब्बत में ख़ुशी भी कहकशाँ मा'लूम होती है ये हस्ती अब हमें लुत्फ़-ए-जहाँ मा'लूम होती है है गुज़री क्या से क्या इश्क़-ओ-मोहब्बत के तनाज़ुर में मोहब्बत ख़ारिज-अज़-सूद-ओ-ज़ियाँ मा'लूम होती है हम इस दुनिया में रह कर आख़िरत की बात करते हैं हमें तो ये ज़मीं अब आसमाँ मा'लूम होती है ये है अब शाइरी मज्ज़ूब की सुन लो ज़रा यारो फ़क़ीरी भी निशान-ए-इम्तिहाँ मा'लूम होती है उन का मो'जिज़ा ये रहमतुलल्लिआलमीं होना ये दुनिया रौनक़-ए-कौन-ओ-मकाँ मा'लूम होती है तलातुम-ख़ेज़ दरिया और ये साहिल से नज़्ज़ारा हर इक मौज-ए-तलातुम बे-कराँ मा'लूम होती है ख़ुदा ने अज़्मत-ए-इंसानियत बख़्शी उन्हें ऐ 'शाद' तसव्वुफ़ में ख़ुदी अब शादमाँ मा'लूम होती है