बा'द मुद्दत के मिरे आँख से आँसू निकले ख़ुश्क सहरा में जो पानी गिरे ख़ुशबू निकले अश्क सूखे हुए गालों पे कजी से निकले रक़्स करते हुए सहराओं में आहू निकले तेरे दीवाने के दीवानों के दीवाने हैं तेरी क्या बात करें बातों से ख़ुशबू निकले तेरे मयख़ाने में जो आज उछाला साग़र एक क़तरे के मिरे सैकड़ों पहलू निकले साक़िया तू ने जो कल दी थी मुझे कम दी थी आज निकले तो फ़क़त ले के तराज़ू निकले नींद से चूर ज़माने की दरख़्शाँ हो हयात घर से अंगड़ाइयाँ लेता हुआ गर तू निकले