उम्र-भर की तल्ख़ बेदारी का सामाँ हो गईं हाए वो रातें कि जो ख़्वाब-ए-परेशाँ हो गईं मैं फ़िदा उस चाँद से चेहरे पे जिस के नूर से मेरे ख़्वाबों की फ़ज़ाएँ यूसुफ़िस्ताँ हो गईं उम्र-भर कम-बख़्त को फिर नींद आ सकती नहीं जिस की आँखों पर तिरी ज़ुल्फ़ें परेशाँ हो गईं दिल के पर्दों में थीं जो जो हसरतें पर्दा-नशीं आज वो आँखों में आँसू बन के उर्यां हो गईं कुछ तुझे भी है ख़बर ओ सोने वाले नाज़ से मेरी रातें लुट गईं नींदें परेशाँ हो गईं हाए वो मायूसियों में मेरी उम्मीदों का रंग जो सितारों की तरह उठ उठ के पिन्हाँ हो गईं बस करो ओ मेरी रोने वाली आँखों बस करो अब तो अपने ज़ुल्म पर वो भी पशेमाँ हो गईं आह वो दिन जो न आए फिर गुज़र जाने के बा'द हाए वो रातें कि जो ख़्वाब-ए-परेशाँ हो गईं गुलशन-ए-दिल में कहाँ 'अख़्तर' वो रंग-ए-नौ-बहार आरज़ूएँ चंद कलियाँ थीं परेशाँ हो गईं