ख़्वाब जैसी कहीं कहीं शायद ज़िंदगी है मगर नहीं शायद मैं अकेला हूँ और लगता है जैसे तू है अभी यहीं शायद जिस मोहब्बत का है गुमाँ मुझ को उस पे तुझ को भी है यक़ीं शायद नज़्म जैसा है आसमाँ मेरा गीत जैसी तिरी ज़मीं शायद मैं तुझे भूल जाना चाहता हूँ मैं तुझे याद आना चाहता हूँ