हर तरफ़ महकी हुई मेरे चमन की ख़ुशबू है फ़ज़ाओ में अज़ानों की भजन की ख़ुशबू मुझ को विर्से में मिली गंग-ओ-जमन की ख़ुशबू मेरी हर साँस में बस्ती है वतन की ख़ुशबू छाई रहती है मिरे सर पे घटाओं की तरह हाँ ये ख़ुशबू है मिरी माँ की दुआओं की तरह दिल की दुनिया हुई गुलज़ार इसी ख़ुशबू से शायरी है मिरी सरशार इसी ख़ुशबू से है ये रानाई-ए-अफ़्कार इसी ख़ुशबू से है मोअ'त्तर मिरा किरदार इसी ख़ुशबू से एक दिन मैं इसी ख़ुशबू ही में खो जाऊँगी ओढ़ कर ख़ाक-ए-वतन ख़ाक में सो जाऊँगी