बड़ा सुनसान जज़ीरा था। ऊँचे-ऊँचे और भयानक दरख़्तों से ढका हुआ। जितने भी सय्याह समुंद्र के रास्ते उस तरफ़ जाते, एक तो वैसे ही उन्हें हौसला न होता था कि उस जज़ीरे पर क़दम रखें। दूसरे आस-पास के माही-गीरों की ज़बानी कही हुई ये बातें भी उन्हें रोक देती थीं कि उस जज़ीरे में आज तक कोई नहीं जा सका और जो गया वापिस नहीं आया। उस जज़ीरे पर एक अंजाना ख़ौफ़ छाया रहता है। इनसान तो इनसान परिंदा भी वहाँ पर नहीं मार सकता। ये और इसी क़िस्म की दूसरी बातें सय्याहों के दिलों को सहमा देती थीं। बहुतेरों ने कोशिश की मगर उन्हें जान से हाथ धोने पड़े। एक दिन का ज़िक्र है कि चार आदमियों के एक छोटे से क़ाफ़िले ने उस हैबत-नाक जज़ीरे पर क़दम रखा। कमाल, एक कारोबारी आदमी था। वो बंबई के हंगामों से उकता कर एक पुर-सुकून और अलग-थलग सी जगह की तलाश में था। जब उसे मा’लूम हुआ कि वो जज़ीरा अभी तक ग़ैर-आबाद है तो वो अपनी बीवी परवीन, अपनी लड़की अख़तर, अपने लड़के अशरफ़ को जज़ीरे के बारे में बताया। दोनों भाई बहन ने जो ये बात सुनी तो बेहद ख़ुश हुए। क्योंकि उनके ख़्याल में उस जज़ीरे पर एक छोटे से घर में कुछ वक़्त गुज़ारना जन्नत में रहने के बराबर था। आख़िर-ए-कार वो दिन आ ही गया जब कमाल अपने बच्चों के साथ उस जज़ीरे पर उतरा। जज़ीरा अंदर से बहुत ख़ूबसूरत था। जगह-जगह फूलों के पौदे लहलहा रहे थे। थोड़े-थोड़े फ़ासले पर फल-दार दरख़्त सीना ताने खड़े थे। ऊँचे-ऊँचे टीलों और सब्ज़ घास वाला जज़ीरा बच्चों को बहुत पसंद आया। मगर अचानक कमाल ने चौंक कर इधर-उधर देखना शुरू कर दिया। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने हलका क़हक़हा लगाया हो। पहले तो उसने इस बात को वह्म समझ कर दिल में जगह नहीं मगर दुबारा भी ऐसा ही हुआ तो उसके कान खड़े हुए। उसने दिल में सोच लिया कि माहीगीरों की कही हुई बातों में सच्चाई ज़रूर है। मगर उसने बेहतर यही समझा कि अपने इस ख़्याल को किसी दूसरे पर ज़ाहिर न करे। अगर वो ऐसा करता तो बच्चे ज़रूर डर जाते। जब तक दिन रहा वो सब जज़ीरे की सैर करते रहे। रात हुई तो उन्हें कोई महफ़ूज़ जगह तलाश करनी पड़ी जहाँ वो ख़ेमा लगाना चाहते थे। आख़िर एक छोटे से टीले से नीचे उन्होंने ख़ेमा गाड़ दिया। मगर कमाल बार-बार यही सोच रहा था कि आख़िर वो हल्के से क़हक़हे उसे फिर सुनाई दिए। कमाल को परेशानी तो ज़रूर हुई मगर वो अपनी इस परेशानी को दूसरों पर ज़ाहिर नहीं करना चाहता था। इसलिए उसने अपनी बीवी से कहा, “अभी तो इसी जगह रात बसर की जाए, सुबह को ऐसी जगह देखूँगा जहाँ मकान बनाया जा सके।”
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