पहले तो थी बेहोशी, फिर होश जरा सा आया

पहले तो थी बेहोशी, फिर होश जरा सा आया
थोड़ा समझा जीवन को, फिर सोचा मैं क्यों आया।
यह प्रश्न बहुत दिन गुंजा ना नींद ही ढंग से आई
किस मांगू मैं उत्तर यह बात समझ न आई

मेरे बारे में उत्तर फिर कौन भला दे पाता
मैं कौन कहां से आया यह कौन मुझे समझाता
बहुतों से उत्तर पाकर ना कुछ संतुष्टि पाई
खुद ही खुद को मैं जानू यह बात समझ में आई


बनकर मैं एक बंजारा ढूंढा मैंने जग सारा
मंदिर तीर्थ देवालय में खोज के उसको हारा,
पर उसका पता ना पाया मैं सोच सोच घबराया
क्या खाली हाथ ही जाऊं यह जन्म भी व्यर्थ गवाया।

पूजा अर्चन सब मैंने बहु भांति किए थे जमकर
पर उसको कब पाऊंगा यह प्रश्न खड़ा था तनकर
पंडित और साधु संगत पोथी में खोजा उसको
वह भी सब खोज रहे थे मैं खोज रहा था जिसको


है जिसका प्याला खाली वह कैसे पिलवा देगा
जो नहीं मिला प्रीतम से वह कैसे मिलवा देगा
मैं गया था पाने उसको वह कथा सुनाते मुझको
बोलो केवल बातों से भगवान मिला है किसको


फिर निराकार वालों ने जपने को मंत्र दिए थे
जितना बोला था उनने माला दिन रात जपे थे
पानी पानी कहने से क्या प्यास बुझा करती है
रोटी रोटी जपने से क्या भूख मिटा करती है


दिल में थी घोर निराशा सोचा मैं कैसे खोजूं
कुछ प्रश्न रहा ना बाकी आखिर मैं अब क्या बोलूं
सोचा जो होगा होगा वह खुद ही खुद खोजेगा
बस मौन प्रार्थना कर ले तू क्यों इतना सोचेगा


न जाने कौन जन्म के पुण्य का लाभ मिला था
मेरे जीवन के मरूथल में भी एक फूल खिला था
था बहुत सुवासित क्षण वह मिलने को प्रियतम आए
मेरा संताप मिटने जीवन में सद्गुरु आए



पतझड़ बीती वह क्षण में आया बसंत जीवन में
देखा जो मैंने उनको ना प्रश्न रहे कुछ मन में
यूं लगा दहकती गर्मी में मिली हो कोई छाया
प्यासे राही ने जैसे गंगा का सागर पाया


मन के विचार थे मेरे सागर में उठती लहरें
समझा जाना फिर इनको अंतस में जाकर गहरे
लहरें तो बस लहरें हैं अंदर सागर ठहरा है
लहरों से वही डरा है जो भीतर ना उतरा है


लगता था जैसे मुझको ईश्वर का गांव भी होगा
चलता खाता भी होगा उसका कोई ठांव भी होगा
लेकिन अनंत ईश्वर का सतगुरु ने रूप दिखाया
बातें थी सारी झूठी औरों ने जो समझाया


अनहद का बाजा सुनकर मस्ती जीवन में आई
मन हुआ है मंदिर जैसा कृपा इतनी बरसाई
देखा जो नूर प्रभु का कट गए हैं जम के फांसे,
बेफिक्री है ना चाहूं मैं आशा और दिलासे



----- कवि गोपाल पाठक
राष्ट्रीय कवि

किसी के ख़त का बहुत इंतिज़ार करते हैं

Shayari By

किसी के ख़त का बहुत इंतिज़ार करते हैं
हमारी छत पे कबूतर नहीं उतरते हैं

ख़ुशी के प्यार के गुल के बहार के लम्हे
हमें मिले भी तो पल भर नहीं ठहरते हैं [...]

हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए

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हो गई है पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
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