मीआ'द

Shayari By

हर एक ख़्वाब की मीआ'द
तय होनी चाहिए

चाहे पूरा हो
या अधूरा हो [...]

मेरा मज़हब

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जिस से करनी थी तौबा
वो ही ख़ुद-बख़ुद ख़ुदा बन गया

मेरे मज़हब में मोहब्बत को
किसी भी सूरत कुफ़्र नहीं मानते [...]

ज़ाइद ज़िंदगी

Shayari By

कहानी और होती कुछ हमारी
अगर हम वक़्त से सोने की 'आदत डाल लेते

मगर हम तो
न जाने क्या समझते थे सहर तक जागने को [...]

ज़ब्त का ख़र्च

Shayari By

ज़ब्त को सोच कर ख़र्च करता हूँ मैं
हर किसी पर नहीं

हर जगह पर नहीं
इस लिए मेरी आँखें कभी ख़ुश्क होती नहीं [...]

वाक़'ई झूठ था क्या

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बात सुन कर मिरी वो हँसा
तो मुझे भी लगा बात हँसने की है

ख़ैर अच्छा हुआ
वर्ना मैं ज़िंदगी भर किसी झूठ को जीता रहता [...]

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