तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन

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तिरे माथे पे ये आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन
तू इस आँचल से इक परचम बना लेती तो अच्छा था

यह शे’र इसरार-उल-हक़ मजाज़ के मशहूर अशआर में से एक है। माथे पे आँचल होने के कई मायने हैं। उदाहरण के लिए शर्म व लाज का होना, मूल्यों का रख रखाव होना आदि और भारतीय समाज में इन चीज़ों को नारी का शृंगार समझा जाता है। मगर जब नारी के इस शृंगार को पुरुष सत्तात्मक समाज में नारी की कमज़ोरी समझा जाता है तो नारी का व्यक्तित्व संकट में पड़ जाता है। इसी तथ्य को शायर ने अपने शे’र का विषय बनाया है। शायर नारी को सम्बोधित करते हुए कहते हैं कि यद्यपि तुम्हारे माथे पर शर्म व हया का आँचल ख़ूब लगता है मगर उसे अपनी कमज़ोरी मत बना। वक़्त का तक़ाज़ा है कि आप अपने इस आँचल से क्रांति का झंडा बनाएं और इस ध्वज को अपने अधिकारों के लिए उठाएं।
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भूल कर तू सारे ग़म अपने चमन में रक़्स कर

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भूल कर तू सारे ग़म अपने चमन में रक़्स कर
जाग ऐ दरवेश-ए-जाँ मेरे बदन में रक़्स कर

डाल कर चादर वफ़ा की तू मज़ार-ए-इश्क़ पर
दार-ए-मंसूरी पे आ इस पैरहन में रक़्स कर [...]

ये दिल बहुत उदास है थोड़ा सा झूट बोल

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ये दिल बहुत उदास है थोड़ा सा झूट बोल
भारी पड़ेगा सच अभी हल्का सा झूट बोल

अपनी तरफ़ से गढ़ कोई अच्छी सी दास्ताँ
सच अपने पास रख कोई अच्छा सा झूट बोल [...]

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