हर ख़्वाब के मकाँ को मिस्मार कर दिया है बेहतर दिनों का आना दुश्वार कर दिया है वो दश्त हो कि बस्ती साया सुकूत का है जादू-असर सुख़न को बेकार कर दिया है गिर्द-ओ-नवाह-ए-दिल में ख़ौफ़-ओ-हिरास इतना पहले कभी नहीं था इस बार कर दिया है कल और साथ सब के इस पार हम खड़े थे इक पल में हम को किस ने उस पार कर दिया है पा-ए-जुनूँ पे कैसी उफ़्ताद आ पड़ी है अगली मसाफ़तों से इंकार कर दिया है