रिआयत

Shayari By

“मेरी आँखों के सामने मेरी जवान बेटी को न मारो।”
“चलो इसी की मान लो… कपड़े उतार कर हाँक दो एक तरफ़।”


जाएज़ इस्तेमाल

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दस राउंड चलाने और तीन आदमियों को ज़ख़्मी करने के बाद पठान भी आख़िर सुर्ख़-रु हो ही गया।
एक अफ़रा तफ़री मची थी। लोग एक दूसरे पर गिर रहे थे। छीना झपटी हो रही थी। मार धाड़ भी जारी थी।

पठान अपनी बंदूक़ लिए घुसा और तक़रीबन एक घंटा कुश्ती लड़ने के बाद थर्मस बोतल पर हाथ साफ़ करने में कामयाब होगया।
पुलिस पहुंची तो सब भागे... पठान भी। [...]

सफ़ाई पसंदी

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गाड़ी रुकी हुई थी। तीन बंदूक़्ची एक डिब्बे के पास आए।
खिड़कियों में से अंदर झांक कर उन्हों ने मुसाफ़िरों से पूछा,

“क्यूँ जनाब कोई मुर्ग़ा है।”
एक मुसाफ़िर कुछ कहते कहते रुक गया। बाक़ियों ने जवाब दिया, [...]

कस्र-ए-नफ़्सी

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चलती गाड़ी रोक ली गई। जो दूसरे मज़हब के थे उनको निकाल निकाल कर तलवारों और गोलियों से हलाक कर दिया गया।
इससे फ़ारिग़ हो कर गाड़ी के बाक़ी मुसाफ़िरों की हलवे, दूध और फलों से तवाज़ो की गई।

गाड़ी चलने से पहले तवाज़ो करने वालों के मुंतज़िम ने मुसाफ़िरों को मुख़ातब करके कहा,
“भाईयो और बहनो! हमें गाड़ी की आमद की इत्तिला बहुत देर में मिली। यही वजह है कि हम जिस तरह चाहते थे उस तरह आपकी ख़िदमत न कर सके।” [...]

हलाल और झटका

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“मैंने उसकी शहरग पर छुरी रखी। हौले हौले फेरी और उस को हलाल कर दिया।
“ये तुम ने क्या किया?”

“क्यूँ?”
“उसको हलाल क्यूँ किया?” [...]

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