घर तक

Shayari By

लिंगा
स्वामी

हम रास्ता भूल गए हैं। लेकिन मेरा ख़्याल है, हमारा गाँव यहाँ से क़रीब ही है। उधर देखिए स्वामी। सफ़ेद लकीर दिखाई दे रही है ना, वही होगी सड़क। नहीं वो तो पानी बह रहा है। एक छोटा सा नाला।
इधर आ, इस टीले पर चढ़ कर देखें। शायद कुछ पता चले। [...]

उसका पति

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लोग कहते थे कि नत्थू का सर इसलिए गंजा हुआ है कि वो हर वक़्त सोचता रहता है। इस बयान में काफ़ी सदाक़त है क्योंकि सोचते वक़्त नत्थू सर खुजलाया करता है।
उसके बाल चूँकि बहुत खुरदरे और ख़ुश्क हैं और तेल न मलने के बाइस बहुत ख़स्ता हो गए हैं, इसलिए बार बार खुजलाने से उस के सर का दरमियानी हिस्सा बालों से बिल्कुल बेनियाज़ हो गया है। अगर उसका सर हर रोज़ धोया जाता तो ये हिस्सा ज़रूर चमकता। मगर मैल की ज़्यादती के बाइस उसकी हालत बिल्कुल उस तवे की सी हो गई है जिस पर हर रोज़ रोटियां पकाई जाएं मगर उसे साफ़ न किया जाये।

नत्थू भट्टे पर ईंटें बनाने का काम करता था। यही वजह है कि वो अक्सर अपने ख़यालात को कच्ची ईंटें समझता था और किसी पर फ़ौरन ही ज़ाहिर नहीं किया करता था। उसका ये उसूल था कि ख़याल को अच्छी तरह पका कर बाहर निकालना चाहिए ताकि जिस इमारत में भी वो इस्तेमाल हो उसका एक मज़बूत हिस्सा बन जाये।
गांव वाले उसके ख़यालात की क़द्र करते थे और मुश्किल बात में उससे मशवरा लिया करते थे, लेकिन इस क़दर हौसला-अफ़ज़ाई से नत्थू अपने आपको अहम नहीं समझने लगा था। जिस तरह गांव में शंभू का काम हर वक़्त लड़ते-झगड़ते रहना था, उसी तरह उसका काम हर वक़्त दूसरों को मशवरा देते रहना था। [...]

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