ख़्वाब के फूलों की ताबीरें कहानी हो गईं ख़ून ठंडा पड़ गया आँखें पुरानी हो गईं जिस का चेहरा था चमकते मौसमों की आरज़ू उस की तस्वीरें भी औराक़-ए-ख़िज़ानी हो गईं दिल भर आया काग़ज़-ए-ख़ाली की सूरत देख कर जिन को लिखना था वो सब बातें ज़बानी हो गईं जो मुक़द्दर था उसे तो रोकना बस में न था उन का क्या करते जो बातें ना-गहानी हो गईं रह गया 'मुश्ताक़' दिल में रंग-ए-याद-ए-रफ़्तगाँ फूल महँगे हो गए क़ब्रें पुरानी हो गईं