सामने रह कर न होना मसअला मेरा भी है इस कहानी में इज़ाफ़ी तज़्किरा मेरा भी है बे-सबब आवारगी मसरूफ़ रखती है मुझे रात दिन बेकार फिरना मश्ग़ला मेरा भी है बात कर फ़रहाद से भी इंतिहा-ए-इश्क़ पर मशवरा मुझ से भी कर कुछ तजरबा मेरा भी है क्या ज़रूरी है अँधेरे में तिरा तन्हा सफ़र जिस पे चलना है तुझे वो रास्ता मेरा भी है है कोई जिस की लगन गर्दिश में रखती है मुझे एक नुक्ते की कशिश से दायरा मेरा भी है बे-सबब ये रक़्स है मेरा भी अपने सामने अक्स वहशत है मुझे भी आइना मेरा भी है एक गुम-कर्दा गली में एक ना-मौजूद घर कूचा-ए-उश्शाक़ में 'आसिम' पता मेरा भी है