तुम ग़ैर से मिलो न मिलो मैं तो छोड़ दूँ गर इस वफ़ा पे कोई कहे बेवफ़ा मुझे सच है तू बद-गुमाँ है समझता है कुछ का कुछ बोसा न लेना था तिरे आईने का मुझे इंसाफ़ कर ख़राब न फिरता मैं दर-ब-दर मिलती जो तेरे गोशा-ए-ख़ातिर में जा मुझे उस बुत की मैं दिखाऊँगा तस्वीर वाइज़ो फिर क्या कहेगा दावर-ए-रोज़-ए-जज़ा मुझे क्यूँ उन से वक़्त-ए-क़त्ल किया शिकवा ग़ैर का करनी थी मग़फ़िरत ही की अपनी दुआ मुझे पूछे जो तुझ से कोई कि 'तस्कीं' से क्यूँ मिला कह दीजो हाल देख के रहम आ गया मुझे