हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँ दिनों की बात है महफ़िल की आबरू Admin महफ़िल ऐ शायरी, इश्क << मैं रो के आह करूँगा जहाँ ... अब तो ख़ुशी का ग़म है न ग... >> हमारा ज़िक्र भी अब जुर्म हो गया है वहाँदिनों की बात है महफ़िल की आबरू हम थेख़याल था कि ये पथराव रोक दें चल करजो होश आया तो देखा लहू लहू हम थे || Share on: