अकेले राह पर चलने की आदत सी हो गई है

अकेले राह पर चलने की आदत सी हो गई है.....
घुट घुट कर यूँ जीने की चाहत सी हो गई है...
पुकारा करते थे किसी शाम हर किसी को साथ चलने को..
मिला न कोई साथ तब से अकेले रहने की आदत सी हो गई है......
खुशियों की चाह में जमाने ने गमो को ठुकरा दिया...
उन गमो को साथ देने की आदत सी हो गई है...
सांसे तोह चलती है,दिल भी धडकता है...
अगर इसी को जीना कहते है तोह मुझे जीने की आदत सी हो गई है....

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