एक झूठी मुस्कुराह्ट को खुशी कहते रहे ,सिर्फ़ जीने भर को हम क्यों ज़िन्दगी कहते रहेहम तो अपने आप को ही ढूंढते थे दर-ब-दर ,लोग जाने क्या समझ आवारगी कहते रहेअब हमारे लब खुले तो आप यूं बेचैन हैं ,जबकि सदियों चुप थे हम बस आप ही कहते रहेरहनुमाओं में तिज़ारत का हुनर क्या खूब है ,तीरगी दଽ
947 करके हमको रोशनी कहते रहे |