रोज़ - रोज़ गिर कर भी मुकम्मल खड़ा हूँ मुश्किलों पर शायरी, Inspirational << मंजिल पर पहुँचना है तो कभ... कोई लक्ष्य मनुष्य के साहस... >> रोज़ - रोज़ गिर कर भी मुकम्मल खड़ा हूँ,ऐ मुश्किलों देखो मैं तुमसे कितना बड़ा हूँ। Share on: