मुहँ छिपाने सेआँख बंद कर लेने सेमुसीबतें टला नहीं करतीआँख खोल अक्सर तो येकई बार आँख मिलातेडर जाती हैंतेरी चुप्पी तुझेकटघरे में ला देती हैतू भी तो हुंकार भरदेख और आजमाकैसे लोग ऊँची आवाज मेंझूठ को सच साबित करते हैसच ही बोलअरे बोल तो सहीलोग मौन को अबकहाँ समझते हैंजोर से कहदेख ये तमामभौम्पू अपने झूठ कोसच साबित करते हैंअब मौन सेकाम न चलेगासच को सामनेलाना ही होगाअब अन्धो कोचाँद दिखता नहींउन्हें ऊँची आवाज मेंबताना होगा