आख़िर जोजो ने बिल्ली के गले में घंटी बाँधने का बीड़ा उठाया। बरकत फ़्लोर मिल चूहों की एक क़दीम और वसीअ रियासत थी। गंदुम की बोरियों के साथ सूखी रोटियों की बोरियाँ भी मौजूद होती थीं ताकि दोनों को मिला कर आटा तैयार किया जा सके और यूँ हाजी बरकत अली की आमदनी और लोगों के पेट के अमराज़ में इज़ाफ़ा होता रहे। जब गंदुम और सूखी रोटियों की नई खेप आती तो चूहों की ईद हो जाती। जब सेर हो कर खाने के बाद उनके पेट लटक जाते तो वो नए-नए ख़्वाब देखने लगते और इस क़िस्म की तक़रीरें होतीं... एक बुज़ुर्ग चूहा अपनी दाढ़ी खुजाते हुए बोले, “मेरे अज़ीज़ हम-वतनों, आख़िर हम कब तक चूहेदानों और बिल्ली का शिकार होते रहेंगे। आख़िर कब वो इन्क़िलाब आएगा जब हर गोदाम, हर बावर्ची-ख़ाना और हर परचून की दुकान पर हमारी हुकूमत होगी?” अगला नौजवान चूहा दोनों टाँगों पर खड़ा हो कर पहलवानों की तरह रान पर हाथ मारते हुए, “इस बार ना-मुराद बिल्ली मुझे नज़र आ जाए फिर देखना उसका क्या हश्र करता हूँ। ज़ुल्म सहना भी ज़ालिम की हिमायत है।” अगला ज़ईफ़ चूहा खाँसते हुए, “हम सदियों से बिल्ली के मज़ालिम से पीछा छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं। मैं एक बार फिर कहता हूँ, अगर हम बिल्ली के गले में घंटी बाँधने में कामयाब हो जाएँ तो हम हमेशा के लिए महफ़ूज़ हो जाएँगे।” बिल्ली के गले में घंटी बाँधने की तदबीर वाक़ई चूहों की क़ौम में एक अरसे से गर्दिश कर रही थी। इस सिलसिले में कुछ संजीदा और इन्क़िलाबी इक़दामात भी हुए लेकिन कामयाबी हासिल न हो सकी। एक बार चंद नौजवान वो घंटा घसीट लाए जो स्कूल में लकड़ी के हथौड़े से बजाया जाता है। नतीजा ये हुआ कि वो भारी थाली नुमा घंटा सिपाहियों से सँभल न सका और दो-तीन उसी के नीचे दब कर रहलत फ़र्मा गए। दूसरी बार कुछ कम-फ़ह्म नौजवान किसी बैल की घंटी घसीट लाए। उसके घसीटने में ऐसा शोर मचा कि सोई हुई बिल्लियाँ जाग गईं और यूँ तमाम इन्क़िलाबी बिल्लियों के हत्थे चढ़ गए। जोजो एक निहायत चालाक, शरीर और निडर चूहा था। वालदैन के बार-बार मना करने के बावजूद वो चूहे-दान में लगा मक्खन पनीर या डबल-रोटी का टुकड़ा साफ़ निकाल लाता और चूहे-दान का मुँह हैरत से खुले का खुला रह जाता। जोजो भी अपने बुज़ुर्गों के दावे और अहमक़ाना तक़रीरें सुनता रहता। आख़िर उसने बिल्ली के गले में घंटी बाँधने का बीड़ा उठाया। उसने अपने तीनों दोस्तों चूँचूँ, गोगो और चमकू को अपनी स्कीम तफ़सील से समझाई और तंबीह कर दी कि इस स्कीम की इत्तेला किसी बुज़ुर्ग को न दी जाए। चमकू का घर बोतल-गली की मशहूर दुकान मक्का इत्र हाऊस में था। चारों दोस्त वहाँ से एक ख़ूबसूरत सुनहरी इत्र की ख़ाली शीशी लेकर आए और उसे साफ़ करके एक मख़मल की डिबिया में रख दिया। अगले दिन चारों दोस्त वो शीशी लेकर फूलबाग पहुँचे। एक क्यारी में चम्बेली के फूल आँखें मूँदे सो रहे थे। जोजो ने उनकी नाज़ुक गर्दन हिला कर कहा, “चम्बेली बहन, माफ़ करना हम आपकी नींद में मुख़िल हुए। आपकी बहुत मेहरबानी हो अगर आप अपनी ख़ुशबू के चंद क़तरे इनायत कर दें।” चम्बेली ने मुस्कुराते हुए चंद क़तरे शीशी में टपका दिए। इसके बाद चारों दोस्त गुलाब के पास गए जो खिलखिला कर बुलबुल से बातें कर रहा था। चूँचूँ ने गुलाब को सलाम कर के कहा, “फूलों के राजा, अगर आप हमें अपनी ख़ुशबू के चंद क़तरे दे दें तो आपका बहुत एहसान होगा।” “अरे हमारा तो काम ही ख़ुशबू बाँटना है। भर लो शीशी।” गुलाब ने हंसकर कहा... यूँ चारों दोस्त बेला, चम्पा, रात की रानी, दिन का राजा के पास भी गए और उनकी ख़ुशबुओं के क़तरे भी हासिल कर लिए और सुनहरी शीशी पत्तों में छिपा दी। बिल्लियों ने अपने-अपने इलाक़े बाँट रखे थे और बरकत फ़्लोर मिल पर मानो चम्पा की हुकूमत थी। जोजो को इल्म था कि 22 जनवरी को बी चम्पा की सालगिरह है और उस दिन फ़्लोर मिल की छत पर इलाक़े की बिल्लियाँ जमा हो कर जश्न मनाएँगी और यूँ उस दिन चारों दोस्त अपनी ज़िंदगियाँ दाँव पर लगा कर एक चूहे-गाड़ी पर वो ख़ुशबुओं से भरी शीशी लाद कर उस वक़्त छत पर पहुँचे जब बिल्लियों का जश्न उरूज पर था। फ़र्श पर एक सफ़ेद दस्तर-ख़्वान पर गोश्त की बोटियों, नर्म-नर्म हड्डियों और मछलियों का ढेर था। मिट्टी के कूँडों में दूध भरा हुआ था। चारों दोस्त एक कोने में ख़ामोशी से बैठ गए। कुछ देर बाद जब बी चम्पा की नज़र उन चारों पर पड़ी तो उसकी दुम और कमर के बाल खड़े हो गए और उसने चीख़ कर कहा, “तुम! तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई हमारी महफ़िल में आने की!” एक और मेहमान बिल्ली होंटों पर ज़बान फेरते हुए बोली, “चलो अच्छा हुआ। अब खाने के मीनू में इन चारों का भी इज़ाफ़ा हो जाएगा।” जोजो ने अदब से सर झुका कर कहा, “चम्पा बहन हमारी नीय्यत साफ़ है। हम लोग आपकी सालगिरह पर ऐसा नायाब तोहफ़ा लेकर आए हैं कि आपका दिल बाग़-बाग़ हो जाएगा।” और ये कहते हुए जब जो-जो ने ख़ुशबू की शीशी का ढकना खोला तो मस्त कर देने वाली ख़ुशबू चारों तरफ़ फैल गई। मानो चम्पा ने हैरत से सुनहरी शीशी की तरफ़ देखा और फिर चंद क़तरे अपने रेशमी बालों पर लगा लिए जिससे उसके पूरे जिस्म से ख़ुशबुओं की लपटें उठने लगीं। चम्पा ने ख़ुश हो कर कहा, “वाक़ई तुम लोगों का तोहफ़ा लाजवाब है। इसलिए हम इस ख़ुशी में आज तुम लोगों को नोश फ़रमाने का इरादा तर्क करते हैं।” इसके बाद जब भी बी चम्पा ख़ुशबू लगा कर निकलतीं तो चारों तरफ़ महक फैल जाती और तमाम चूहे महफ़ूज़ मुक़ामात पर पहुँच जाते और यूँ जोजो की अक्लमंदी से आख़िर-ए-कार चूहे बिल्ली के गले में घंटी बाँधने के बजाय उन्हें ख़ुशबू में मुअत्तर करने में कामयाब हो गए और उनका सदियों पुराना बिल्ली से होशियार रहने का ख़्वाब पूरा हो गया।