तकली की पैदाइश

स्वर्ग में एक देवी रहती थी। उसका नाम फिरकी था वो बुनाई का काम इतनी होशयारी से करती थी कि कुछ न पूछिए। जिस वक़्त हाथ में तीलियाँ ले कर बैठती थी बात की बात में बढ़िया से बढ़िया सुएटर, बिनयान, मफ़लर वग़ैरा बुन कर रख देती थी। इस लिए दूर-दूर तक उसकी तारीफ़ हो रही थी। फिरकी की शोहरत होते-होते रानी के कानों तक पहुँची। वो अपनी तमाम बच्चियों को बुनाई का काम सिखाना चाहती थी और बहुत दिन से एक ऐसी ही होशियार देवी की तलाश में थी। उसने अपनी सहेलियों से कहा... “सुनती हूँ फिरकी बहुत होशयारी से बुनाई का काम करती है। कहो तो उसे बुला लूँ। वो यहीं रहेगी और राजकुमारियों को बुनाई-सिलाई सिखलाया करेगी।”
एक सहेली कुछ सोच कर बोली, “इस बात का क्या भरोसा कि सिलाई-बुनाई के काम में अकेली फिरकी ही सब देवियों से ज़्यादा होशियार है। मेरी बात मानिए एक जलसा कर डालिए। जिसमें सिलाई-बुनाई का काम जानने वाली सब देवियाँ आएं और अपना-अपना हुनर दिखाएं। जो सब से बाज़ी ले जाये वही पहला इनाम पाए और हमारी राजकुमारी को भी हुनर सिखाएँ।”

रानी को ये सलाह बहुत पसंद आई। उसने फ़ौरन जलसा बुलाने का फ़ैसला कर लिया और उसी दिन सारे स्वर्ग में मुनादी करा दी। ठीक वक़्त पर जलसे में सिलाई-बुनाई का काम जानने वाली सैकड़ों देवियाँ आ पहुँचीं और लगीं अपने हाथों की सफ़ाई दिखाने। आख़िर फिरकी बाज़ी ले गई। रानी ने सहेलियों की सलाह से उसे ही पहला इनाम दिया। फिर उससे कहा... “बस अब तुम्हें यहाँ-वहाँ भटकने की ज़रूरत नहीं। आज से तुम मेरी सहेली हुईं। मज़े से यहीं रहो और राजकुमारी को बुनाई-सिलाई सिखाया करो, समझीं?”
इस तरह फिरकी की क़िस्मत जाग उठी। वो रानी के पास रहने लगी। राजकुमारियाँ हर रोज़ तीलियाँ, सूत, कपड़ा, क़ैंची, सूई धागा वग़ैरा लेकर उसके पास जा बैठतीं और वो उन्हें बड़ी मेहनत से सिलाई-बुनाई का काम सिखाया करती। रानी उसका काम देखती तो बहुत ख़ुश होती और उसे हमेशा इनामात से नवाज़ा करती।

रफ़्ता-रफ़्ता फिरकी माला-माल हो गई। वो सोचने लगी रानी की मेहरबानी है ही। माल की भी कोई कमी नहीं रही है। सिलाई-बुनाई का काम भी मैं सबसे अच्छा जानती हूँ। अब स्वर्ग में ऐसी कौन सी देवी है जो मेरा मुक़ाबला कर सके। बस उसका ग़ुरूर जाग उठा और फिरकी का सर फिर गया। वो अब और तो और रानी की सहेलियों से भी सीधे मुँह बात न करती। फिरकी का ये सुलूक रानी की सहेलियों को बहुत नागवार गुज़रा। एक दिन उन्होंने रानी से शिकायत की... “फिरकी को तो आपने ख़ूब सिर चढ़ाया है। अब तो वो किसी से भी सीधे मुँह बात नहीं करती। जब देखो ग़ुरूर से मुँह फुलाए रहती है। आप ही बताएँ। वो अब हमारे स्वर्ग में किस तरह रह सकती है।”
ये सुनते ही रानी आग बगूला हो गई। बोली, “ऐसा! कहती क्या हो? फिरकी ग़ुरूर करने लगी है। फिर तो वो देवी ही नहीं रही और जो देवी नहीं है वो स्वर्ग में कब रह सकती है। मैं अभी उसे सज़ा दूँगी। ज़रा उसे पकड़ तो लाओ मेरे सामने।”

फ़ौरन दो-तीन देवियाँ दौड़ी-दौड़ी गईं और फिरकी को पकड़ लाईं। रानी ने उस पर ग़ुस्से की निगाह डाली और कहा। “क्यों री फिरकी। ये मैं क्या सुन रही हूँ? तू ग़ुरूर करने लगी है? जानती है ग़ुरूर करने वाले को क्या सज़ा मिलती है? ग़ुरूर करने वाला फ़ौरान स्वर्ग से बाहर निकाल दिया जाता है... और तो और ग़ुरूर करने पर तो मैं भी स्वर्ग में नहीं रह सकती। यहाँ का क़ानून यही है।”
फिरकी सहम कर बोली, “अब तो ग़लती हो गई। श्रीमती जी बस इस बार मुझे माफ़ कर दीजिए। फिर कभी ऐसी ग़लती करूँ तो आप की जूती और मेरा सर।”

रानी ने कहा, “तेरे लिए क़ानून नहीं तोड़ा जा सकता। तुझे ज़रूर सज़ा मिलेगी और स्वर्ग छोड़ कर ज़मीन पर जाना ही पड़ेगा। हाँ मैं इतनी मेहरबानी कर सकती हूँ कि तो जो शक्ल चाहे उसी शक्ल में तुझे ज़मीन पर भेज दूँ। बोल तेरी ख़्वाहिश वहाँ किस शक्ल में जाने की है?”
उसी वक़्त वहाँ अचानक एक फक़ीर आ पहुँचा। वो कपड़ों की बजाय चोग़ा पहने हुए था। उसे देख कर सब देवियों को बहुत ताज्जुब हुआ रानी ने उससे पूछा। “आप कौन हैं? कहाँ के रहने वाले हैं? सूरत तो आप ने बहुत अजीब बना रखी है। हमने तो आज तक ऐसी अजीब-ओ-ग़रीब सूरत देखी नहीं।”

फ़क़ीर ने जवाब दिया, “मैं एक मामूली इन्सान हूँ। ज़मीन का रहने वाला हूँ।”
रानी ने कहा, “अच्छा आप इन्सान हैं… ज़मीन के रहने वाले हैं… इन्सान ग़ुरूर के पुतले होते हैं। वो कभी स्वर्ग में नहीं आ सकते… भला आप किस तरह यहाँ पहुँचे?”

फ़क़ीर बोला, “मैंने ग़ुरूर छोड़ कर बहुत दिनों तक तप किया है... अपनी सारी ज़िंदगी अपने हम-वतनों की ख़िदमत ही में बसर की है। इसीलिए मैं यहाँ आ सका हूँ।”
रानी ने ख़ुश हो कर कहा, “फिर तो आप भले आदमी हैं। आपसे मिलकर मुझे बहुत ही ख़ुशी हुई। मेरे लायक़ कोई ख़िदमत हो तो बिला-ताम्मुल कहिए।”

फ़क़ीर बोला, “देवी ज़मीन पर रहने वाले इन्सान बहुत दुखी हैं, कपड़े पहनना भी नहीं जानते... वो बेचारे अपने जिस्म पर पत्ते लपेट-लपेट कर अपनी ज़िंदगी बसर करते हैं। आप मेहरबानी करके कोई ऐसी चीज़ दीजिए जिसके ज़रिए से वो सूत कात सकें। रूई तो ज़मीन पर बहुत होती है। जहाँ लोगों ने इसका सूत निकाल लिया वहाँ कपड़े तैयार हुए ही समझिए।
रानी ने कहा, “अच्छा-अच्छा आप तशरीफ़ तो रखिए… भगवान ने चाहा तो मैं अभी आपकी ख़्वाहिश पूरी किए देती हूँ।”

इसके बाद उसने फिरकी से फिर वही सवाल किया।” हाँ फिर तू किस शक्ल में ज़मीन पर जाना चाहती है?”
फिरकी ने आँखों में आँसू भर कर जवाब दिया, “श्रीमती जी! मैं तो वहाँ किसी भी शक्ल में नहीं जाना चाहती। अगर आप मुझे वहाँ भेजना ही चाहती हैं तो ऐसी शक्ल में भेजिए जिससे में सब इन्सानों की ख़िदमत कर सकूँ, उन का दिल बहला सकूँ और उनसे इज़्ज़त भी पा सकूँ।”

रानी मुस्करा कर बोली, “मैं मानती हूँ फिरकी तू सच-मुच बहुत होशियार है। तूने एक साथ तीन ऐसी बड़ी-बड़ी बातें माँगी हैं जिनसे तू ज़मीन पर भी हमेशा देवी बन कर रहेगी... ख़ैर कोई बात नहीं। मैं तुझे अभी ऐसी शक्ल देती हूँ जिससे तेरी ख़्वाहिश पूरी होने में कोई रुकावट न रहेगी।”
ये कह कर रानी ने चुल्लू में थोड़ा सा पानी लिया और कुछ मंत्र पढ़ कर फिरकी पर छिड़क दिया। फिर क्या था। फिरकी फ़ौरन तकली बन कर खट से गिर पड़ी। रानी ने झपट कर वो तकली उठा ली और फ़क़ीर को दे दी। फ़क़ीर ने तकली लेते हुए पूछा, “इसका क्या होगा देवी? ये तो बहुत छोटी चीज़ है।”

रानी ने जवाब दिया, “चीज़ छोटी तो ज़रूर है लेकिन इससे लोगों का बहुत बड़ा काम निकलेगा। इसके ज़रिये से उनको सूत मिलेगा जिससे कपड़े बुने जाऐंगे। बच्चों को ये खिलौने का काम देगी और फ़ुर्सत के वक़्त सयानों का दिल बहलाया करेगी। वो चाहेंगे तो आपस में खेलते-खेलते या गप-शप करते हुए भी इसके ज़रिये सूत निकालते रहेंगे, अभी ले जाईए।”
कहते हैं इसी तकली से इन्सान ने कातना सीखा और तकली की तरक़्क़ी के साथ ही तहज़ीब की तरक़्क़ी हुई।


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