ज़रूर पढ़ें और सयानी होती बेटियों को भी पढ़ायें।क्यों करता है भारतीय समाज बेटियों की इतनी परवाह...एक संत की कथा में एक बालिका खड़ी हो गई।चेहरे पर झलकता आक्रोशसंत ने पूछा बोलो बेटी क्या बात हैबालिका ने कहा- महाराज हमारे समाज में लड़कों को हर प्रकार कीआजादी होती है। वह कुछ भी करे, कहीं भी जाए उस पर कोई खास टोकाटाकी नहीं होती।इसके विपरीत लड़कियों को बात बात पर टोका जाता है। यह मत करो,यहाँ मत जाओ, घर जल्दी आ जाओ आदि।संत मुस्कुराए और कहा...बेटी तुमने कभी लोहे की दुकान के बाहर पड़े लोहे के गार्डर देखे हैं? येगार्डर सर्दी, गर्मी, बरसात, रात दिन इसी प्रकार पड़े रहते हैं।इसके बावजूद इनका कुछ नहीं बिगड़ता और इनकी कीमत पर भी कोईअन्तर नहीं पड़ता। लड़कों के लिए कुछ इसी प्रकार की सोच है समाज में।अब तुम चलो एक ज्वेलरी शॉप में। एक बड़ी तिजोरी, उसमें एक छोटीतिजोरी। उसमें रखी छोटी सुन्दर सी डिब्बी में रेशम पर नज़ाकत से रखाचमचमाता हीरा।क्योंकि जौहरी जानता है कि अगर हीरे में जरा भी खरोंच आ गई तोउसकी कोई कीमत नहीं रहेगी।समाज में बेटियों की अहमियत भी कुछ इसी प्रकार की है। पूरे घर कोरोशन करती झिलमिलाते हीरे की तरह।जरा सी खरोंच से उसके और उसके परिवार के पास कुछ नहीं बचता।बस यही अन्तर है लड़कियों और लड़कों में।पूरी सभा में चुप्पी छा गई।उस बेटी के साथ पूरी सभा की आँखों में छाई नमी साफ-साफ बता रहीथी लोहे और हीरे में फर्क।