मौसीक़ी का माहिर भी था By बाल कविता, Kah Mukarniyan << ख़ूब हरे पत्तों की सब्ज़ी जब जंगल में भागे है वो >> मौसीक़ी का माहिर भी था सूफ़ी भी था शाइ'र भी था कोई उस का नाम तो बूझो ऐ सखी ग़ालिब ना सखी 'ख़ुसरव' Share on: