रात का वक़्त था। मजाज़ किसी मयख़ाने से निकल कर यूनीवर्सिटी रोड पर तरंग में झूमते हुए चले जा रहे थे। इसी असना में उधर से एक ताँगा गुज़रा। मजाज़ ने उसे आवाज़ दी। ताँगा रुक गया। आप उसके क़रीब आए और लहरा कर बोले, “अमां सदर जाओगे?” “हाँ जाऊँगा।” “अच्छा तो जाओ।” कह कर मजाज़ लुढ़कते हुए आगे बढ़ गए।