गर्मी के मौसम में कोई नौ उम्र अदीब अब्दुल मजीद सालिक से मिलने आए। सालिक साहिब के कमरे में बिजली का पंखा चल रहा था जिसकी भीनी-भीनी ख़ुशबू फैल रही थी और हर चीज़ क़रीने से नफ़ासत से रखी हुई थी। वो अदीब कमरे की शादाब फ़िज़ा से मुतास्सिर हो कर कहने लगा, “सालिक साहिब! आपने तो अपने कमरे को बिल्कुल जन्नत बना रखा है।” सालिक अहब ने फ़ौरन जवाब दिया, “नहीं साहिब! आपके आने से पहले इस जन्नत में ग़िल्माँ (गुलामों) की कमी थी।”