अ’ल्लामा इक़बाल ने जब कैंब्रिज यूनीवर्सिटी से बी.ए. कर लिया तो उनके बड़े भाई ने उन्हें लिखा कि “अब बैरिस्ट्री का कोर्स पूरा करके वापस आ जाओ।” लेकिन अ’ल्लामा का इरादा पी.एचडी. करने का था। इसलिए उन्होंने भाई को लिखा कि “कुछ रक़म भेजिए ताकि जर्मनी जाकर डाक्टरी की सनद ले लूं।” उन्हीं दिनों में वो एक रोज़ स्यालकोट में अपने बे-तकल्लुफ़ दोस्तों की सोहबत में बैठे हुए थे। किसी ने उनसे दरियाफ्त किया “क्यों शेख़-साहब! सुना है इक़बाल ने एक और डिग्री ली है?” उनके भाई ने जवाब दिया “भई क्या बतलाऊं, अभी तो वो डिग्रियों पर डिग्रियां लिये जा रहा है। ख़ुदा जाने उन डिग्रियों का इजरा कब होगा?”