इलाहाबाद यूनीवर्सिटी में कुछ लोग फ़िराक़ और डाक्टर अमरनाथ झा को लड़ाने की कोशिश में लगे रहते थे। एक-बार एक महफ़िल में फ़िराक़ और झा दोनों मौजूद थे। दोनों को तक़रीर भी करना था। इंग्लिश डिपार्टमेंट के एक लेक्चरर ने जिसकी मुस्तक़ली(स्थायित्व) का मुआ’मला ज़ेर-ए-ग़ौर था, कहना शुरू किया कि फ़िराक़ साहिब अपने को क्या समझते हैं। डाक्टर झा उनसे ज़्यादा अंग्रेज़ी, उर्दू नीज़ हिन्दी जानते हैं। फ़िराक़ साहिब ने खड़े हो कर कहा, “भाई, मैं झा साहिब को एक ज़माने से जानता हूँ। उनको अपनी झूटी तारीफ़ क़तअन पसंद नहीं है।”