गिरेबाँ और चाक-ए-गिरेबाँ Admin लखनऊ की शायरी, Latiife << हिन्दोस्तान का एडिटर घड़ी साज़ महबूबा >> “इस्मत चुग़्ताई! तुम लखनऊ से मेरे लिए दो चीज़ें लाना मत भूलना। एक तो कुरते दूसरे मजाज़।” इस्मत लखनऊ में मजाज़ से मिलीं तो शाहिद लतीफ़ की फ़र्माइश दोहरा दी। मजाज़ ने जवाब दिया: “अच्छा गिरेबाँ और चाक-ए-गिरेबाँ दोनों को मंगवाया है।” Share on: