एक मर्तबा मौलाना हाली सहारनपुर तशरीफ़ ले गये और वहां एक मुअ’ज़्ज़िज़ रईस के पास ठहरे जो बड़े ज़मींदार भी थे। गर्मी के दिन थे और मौलाना कमरे में लेटे हुए थे। उसी वक़्त इत्तिफ़ाक़ से एक किसान आगया। रईस साहिब ने उससे कहा कि “ये बुज़ुर्ग जो आराम कर रहे हैं उनको पंखा झल," वो बेचारा पंखा झलने लगा। थोड़ी देर बाद उसने चुपके से रईस साहिब से पूछा कि “ये बुज़ुर्ग जो आराम कर रहे हैं, कौन हैं? मैंने इनको पहली मर्तबा यहां देखा है।” रईस ने जवाब दिया, “कमबख़्त तू इनको नहीं जानता, हालाँकि सारे हिन्दोस्तान में इनकी शोहरत है। ये मौलवी हाली हैं।” इस पर ग़रीब किसान ने बड़े ता’ज्जुब से कहा, “जी कभी हाली (हाली मवाली) भी मौलवी हुए हैं?” मौलाना लेटे थे, सो नहीं रहे थे। किसान का ये फ़िक़रा सुनकर फड़क उठे फ़ौरन उठकर बैठ गये और रईस साहिब से फ़रमाने लगे, “हज़रत इस तख़ल्लुस की दाद आज मिली है।”