एक दराज़ रेश, मौलाना वज़ा के शायर किसी मुशायरे में कह रहे थे: “जोश ऐसे मुल्हिद बे-दीन और बे-उसूल आदमी का हिन्दोस्तान से पाकिस्तान चले जाना ही बेहतर था। ख़स कम जहां पाक...!” “जोश साहिब के मुस्तक़िल तौर पर पाकिस्तान चले जाने से तो यहां ख़स की कमी वाक़ा’ होगी लेकिन मौलाना अगर आप पाकिस्तान हिज्रत फ़र्मा जायें तो हिन्दोस्तान में क्या चीज़ कम हो जाएगी?” “ख़ाशाक।” कँवर महिन्द्र सिंह बेदी सहर ने दोनों की गुफ़्तगु सुनकर निहायत बरजस्तगी से कहा।