गोपीनाथ अम्न के फ़र्ज़ंद की शादी थी। उन्होंने दिल्ली के दोस्त शायरों को भी मदऊ किया। उनमें कँवर महिंद्र सिंह बेदी भी शरीक थे। हर शायर ने सेहरा या दुआ’इया क़ता या रुबाई सुनाई। अम्न साहब ने बेदी साहब से दरख़्वास्त की कि आप भी कुछ इरशाद फ़रमाइए तो बेदी साहब ने ये शे’र फ़िलबदीह कह कर पेश कर दिया, जनाब अम्न के लख़्त-ए-जिगर की शादी है मगर ग़रीब को किस जुर्म की सज़ा दी है