किसी मुशायरे में एक नौ मश्क़ शाइ’र अपना ग़ैर मौज़ूं कलाम पढ़ रहे थे। अक्सर शुअ’रा आदाब-ए-महफ़िल को मलहूज़ रखते हुए ख़ामोश थे। लेकिन जोश मलीहाबादी पूरे जोश-ओ-ख़रोश से एक एक मिसरे पर दाद-ए-तहसीन की बारिश किए जा रहे थे। गोपीनाथ अमन ने टोकते हुए पूछा: “क़िबला! ये आप क्या कर रहे हैं?” “मुनाफ़क़त...!” जोश ने बहुत संजीदगी से जवाब दिया और फिर दाद देने में मस्रूफ़ हो गये।